शुक्र ग्रह मन्त्र शुक्र साधना कौन करे शुक्र का रत्न

शुक्र का रत्न

शुक्र ग्रह मन्त्र शुक्र साधना कौन करे शुक्र का रत्न

शुक्र ग्रह मन्त्र

शुक्र ग्रह दैत्य गुरु माना जाता है। यह सौरमंडल का सबसे चमकीला ग्रह है। यह आग्नेय कोण (दक्षिण और पूर्व के बीच की दिशा) का स्वामी है। शुक्र स्त्री जाति और श्याम गौर वर्ण ग्रह है। इसके प्रभाव से जातक का रंग गेंहुआ होता है। अंग्रेजी में इसे ‘वीनस’कहा गया है। शुक्र व्यक्ति के जीवन में सांसारिक भोग विलास की स्थितियाँ लाता है। यह कामना प्रधान ग्रह है। इसी कारण इस ग्रह से विवाह, भोग, विलास, प्रेम-सम्बन्ध, संगीत, चित्रकला, जुआ, विदेश गमन के साथ शारीरिक सुन्दरता तेजस्विता, सौन्दर्य में कोमलता इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। शुक्र ग्रह मन्त्र के प्रधान व्यक्ति जीवन में हर समय मौज मस्ती करते देखे गये है। यह आकर्षक शक्ति का ग्रह है। इसी ग्रह के कारण स्त्री पुरुष में आकर्षक शक्ति बनती है।
शुक्र ग्रह मनुष्य के चेहरे पर विशेष प्रभाव डालता है। यह वृष और तुला का स्वामी है। मीन राशि में उच्च का तथा कन्या राशि में नीच का होता है। शुक्र का शुक्र के साथ सात्विक व्यवहार, शनि, राहु के साथ तामसिक व्यवहार तथा चन्द्र, सूर्य और मंगल के साथ शत्रुवत व्यवहार रहता है। यह अपने स्थान से सातवें भाव को पूर्ण दृष्टी से देखता है। विंशोत्तरी महादशा में शुक्र की महादशा <strong>20 वर्ष की मानी गई है। जिस जातक के जीवन में शुक्र ग्रह मन्त्र की महादशा आती है और यदि उसकी कुंडली में शुक्र उच्च राशि का राजयोग बना रहा है, तो उस समय वह व्यक्ति सारे भोग विलास प्राप्त करता है।

शुक्र साधना कौन करे?

शुक्र मौज मस्ती और भोग विलास का ग्रह है। इस ग्रह के विपरीत प्रभाव से व्यापार में धन हानि, धन का नुकसान, व्यापार न चलना, काम में मन न लगना, स्त्री से कष्ट, प्रेम विवाह न होना, स्त्री के प्रति कम रूचि, समय पर शादी न होना, स्त्री से नुकसान उठाना, पुत्र की प्राप्ति न होना, मानसिक कष्ट, कर्जा चढ़ना, नशा करना, अपमान, घर में क्लेश बना रहना, रिश्ते ख़राब होना, रिश्ते टूटना, तनाव, आर्थिक तंगी, गरीबी, किसी भी कार्य में सफल न होना, भाग्य साथ न देना, चेहरे पर दाने होना, स्किन के रोग, सुन्दरता में कमी, सम्भोग में कमजोरी, हृदय रोग, कमज़ोरी, कफ बनना, नसों की समस्या, बीमारियों पर पैसा खर्चा होना, जीवन में असफलता आदि सब शुक्र की महादशा, अंतर दशा, गोचर, या शुक्र के अनिष्ट योग होने पर होता है।
यदि आपके जीवन में इस तरह की कोई समस्या आ रही है तो कहीं न कहीं शुक्र ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है। शुक्र ग्रह के अशुभ फल से बचने के लिए अन्य बहुत से उपाय है पर सभी उपायों में मन्त्र का उपाय सबसे अच्छा माना जाता है। इन मंत्रों का कोई नुकसान नहीं होता और इसके माध्यम से शुक्र ग्रह के अनिष्ट प्रभाव से पूर्णता बचा जा सकता है। इसका प्रभाव शीघ्र ही देखने को मिलता है।
किसी कारण वश आप यदि साधना न कर सके तो शुक्र तांत्रोक्त मन्त्र की नित्य 5 माला सफ़ेद आसन पर बैठकर सफ़ेद हकीक माला से जाप करें। तब भी शुक्र ग्रह का विपरीत प्रभाव शीघ्र समाप्त होने लग जाता है पर ऐसा देखा गया है कि मंत्र जाप छोड़ने के बाद फिर पुन: आपको शुक्र ग्रह के अनिष्ट प्रभाव देखने को मिल सकते है, इसलिए साधना करने का निश्चय करें तो ही अधिक अच्छा रहेगा। अगर आप साधना नहीं कर सकते तो किसी योग्य पंडित से भी करवा सकते है।

शुक्र का रत्न:

रत्न विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह का रत्न हीरा है और इसका उपरत्न ओपल है। शुक्रवार के दिन शाम को सूर्यास्त के समय सवा 1 रत्ती का हीरा या सवा 7 रत्ती का ओपल रत्न दाहिने हाथ की अनामिका (रिंग फिंगर) अंगुली में सफ़ेद सोने या चांदी की अंगूठी में बनवाकर धारण करना चाहिये।

साधना विधान:

शुक्र साधना को गुरु पुष्य योग या किसी भी शुक्रवार से प्रारम्भ कर सकते है। यह साधना प्रातः ब्रह्म मुहूर्त (4:24 से 6:00 बजे तक)या शाम को (6:12 से 8:30 के बीच) कर सकते है। इस साधना को करने के लिए साधक स्नान आदि से पवित्र होकर सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण कर लें। पश्चिम दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें और अपने सामने लकड़ी की चौकी पर सफ़ेद रंग का कपड़ा बिछा दें। चौकी पर शिव (गुरु चित्र) चित्र या मूर्ति स्थापित कर मन ही मन शिव जी से साधना में सफलता हेतु आशीर्वाद प्राप्त करें। शिव चित्र के सामने एक थाली रखें उस थाली के बीच सफ़ेद चंदन से स्टार बनाये, उस स्टार में उड़द बिना छिलके वाली दाल भर दें फिर उसके ऊपर प्राण प्रतिष्ठा युक्त स्थापित कर दें। यंत्र के सामने दीपक शुद्ध घी का जलाये फिर संक्षिप्त पूजन कर दाहिने हाथ में पवित्र जल लेकर विनियोग करें –

विनियोग: 

ॐ अस्य शुक्र मन्त्रस्य, ब्रह्मा ऋषि:, विराट् छन्द:, दैत्यपूज्य: शुक्रो देवता, ॐ बीजम् स्वाहा शक्ति:, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । >
विनियोग के पश्चात् गुरु का ध्यान करें —
ॐ श्वेत: श्वेताम्बरधरा: किरीट श्र्व चतुर्भज:
दैत्यगुरु: प्रशान्तश्च साक्षसूत्र कमणडलु: ॥
ध्यान के पश्चात् साधक एक बार पुन: ‘शुक्र यंत्र’ का पूजन कर, पूर्ण आस्था के साथ ‘सफ़ेद हकीक माला’ से शुक्र सात्विक और गायत्री मंत्र की एक-एक माला मंत्र जप करें
शुक्र गायत्री मंत्र: >
॥ ॐ भृगुजाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात् ॥ >
शुक्र सात्विक मन्त्र: >
॥ ॐ शुं शुक्राय नम: ॥ >
इसके बाद साधक शुक्र तांत्रोक मंत्र की नित्य 23 माला 11 दिन तक जाप करे।
शुक्र तांत्रोक्त मंत्र : 
॥ ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राये नम:॥
शुक्र स्तोत्र
नित्य मन्त्र जाप के बाद शुक्र स्तोत्र का पाठ हिन्दी या संस्कृत में अवश्य करें-
नमस्ते भार्गवश्रेष्ठदेव दानवपूजित
वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमोनम: ॥1॥
देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदाङगपारग:
परेण तपसा शुद्र शङकरम् ॥2॥
प्राप्तो विद्यां जीवनख्यां तस्मैशुक्रात्मने नम:
नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे ॥3॥
तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भासिताम्बर
यस्योदये जगत्सर्वं मङगलार्ह भवेदिह ॥4॥
अस्तं याते हरिष्टं स्यात्तस्मै मङगलरूपिणे
त्रिपुरावासिनो देत्यान् शिवबाणप्रपीडितान् ॥5॥
विद्दया जीवयच्छुको नमस्ते भृगुनन्दन
ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन ॥6॥
वलिराज्यप्रदोजीवस्तस्मै जीवात्मने नम:
भार्गवाय नम: तुभ्यं पूर्व गौर्वाणवन्दित॥7॥
जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनमः
नम:शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि ॥8॥
नम: कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने
स्तवराजमिदं पुण्यं भार्गवस्य महात्मन: ॥9॥
य: पठेच्छृणुयाद्वापि लभते वास्छितं फलम्
पुत्रकामो लभेत्पुत्रान् श्रीकामो लभते श्रियम् ॥10॥
राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियमुत्तमाम्
भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं समाहिते ॥11॥
अन्यवारे तु होरायांपूजयेद् भृगुनन्दनम
रोगार्तो मुच्यते रोगाद्रयार्तो मुच्यते भयात् ॥12॥
यद्दत्प्रार्थयते वस्तु तत्तप्राप्नोति सर्वदा
प्रातः काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नत: ॥13॥
सर्वपापविनिर्मुक्त प्राप्नुयाच्छिवसन्निधौ ॥14॥

शुक्र स्तोत्र का भावार्थ:

देवों द्वारा पूजित हे भार्गव श्रेष्ठ, आप अतिवृष्टि को रोकने वाले तथा उपयुक्त वृष्टि करने वाले हैं आपको नमन हो।॥1॥
देव वेदान्त को जानने वाले, असुरों के रक्षक, उग्र तप से पवित्रतम लोक कल्याण कर्ता आप को नमन हो।॥2॥
मृत संजीवनी विद्या के ज्ञाता, भृगुपुत्र, ब्रह्मा के समान तेजस्वी, भगवान् शुक्र को नमन करता हूं।॥3॥
नक्षत्रों के मध्य स्थित, प्रकाश भासित, चमकीले वस्त्र धारण किये हुए, जिनके उदित होते समस्त संसार मंगलमय होता है उन्हें नमस्कार।॥4॥
जिनके अस्त होने पर संसार में अनिष्ट होता है। ऐसे मंगलस्वरूप, शिव के बाण से पीड़ित, त्रिपुरा पर घिरे हुए असुरों से रक्षा करने वाले आपको नमन करता हूं।॥5॥
अपनी विद्या से असुरों को जीवित करने वाले भृगुनन्दन, कविराज, ययाति कुल के गुरु आप को नमन हो।॥6॥
राजा बलि को उसका राज्य तथा उसके प्राण को देने वाले, देवों द्वारा पूजित भगवान् शुक्राचार्य को नमन करता हूँ।॥7॥
प्राणियों को अमृतत्व का ज्ञान देने वाले भृगुपुत्र का मैं ध्यान करता हूँ।॥8॥
समस्त संसार के कारण स्वरुप, कार्य को सम्पन्न करने वाले, महात्मा भार्गव इस पवित्र स्तोत्र का पाठ करता हुआ नमन करता हूँ।॥9॥
जो साधक प्रतिदिन पाठ करता है, सुनता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है। पुत्रार्थी पुत्र को तथा धनार्थी धन को प्राप्त करता है।॥10॥
राज्यार्थी राज्य को, स्त्री का इच्छुक सुन्दर पत्नी को प्राप्त करता है। अत: शुक्रवार को ध्यान पूर्वक इस स्तोत्र को पाठ करना चाहिए।॥11॥
अन्य दिनों में भी एक घड़ी जो साधक भगवान शुक्र की पूजा करता है, वह रोग से मुक्त होकर भय रहित हो जाता है।॥12॥
जो साधक श्रद्धा पूर्वक प्रार्थना करता है उसे वह प्राप्त करता है, प्रात: इस पूजा को सम्पन्न करना चाहिए।॥13॥
इस प्रकार सभी पापों से मुक्त होकर साधक शिव साम्राज्य को प्राप्त करता है।॥14॥

शुक्र मंत्र साधना का समापन:

शुक्र साधना ग्यारह दिन की है। साधना के बीच साधना नियम का पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन मंत्र जप करें। नित्य जाप करने से पहले संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह दिन तक शुक्र ग्रह मन्त्र का जाप करने के बाद मंत्र का दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन करें। हवन के पश्चात् यंत्र को अपने सिर से उल्टा सात बार घुमाकर दक्षिण दिशा में किसी निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दें। इस तरह से यह साधना पूर्ण मानी जाती है। धीरे-धीरे शुक्र अपना अनिष्ट प्रभाव देना कम कर देता है, शुक्र से संबंधित दोष आपके जीवन से समाप्त हो जाते है।

शुक्रवार व्रत का महात्म्य एवं विधान, व्रत कथा
शुक्रवार का यह व्रत संतोषी माता की निमित्त किए जाने वाले व्रत से पृथक है ।
शुक्रवार को शुक्र ग्रह की शांति हेतु यह व्रत किया जाता है। शुक्र ग्रह सौंदर्य, काम शक्ति, तेजस्विता, सौभाग्य और समृद्धि को नियन्त्रि करते हैं, अतः इसकी अनुकूलता व्यक्ति को कुशल वक्ता, विद्धान, राजनेता और सफल उद्योगपति बनाती है। शुक्रवार का यह व्रत यौन रोगों के निदान, बुद्धिवर्द्धन और सत्ता तथा राज सुख की प्राप्ति के लिए अमोघ अस्त्र है ।

शुक्रवार व्रत विधि |

इस व्रत को शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) शुक्रवार में जब शुक्र उदित हो अर्थात् शुक्र डूबा हुआ न हो से प्रारंभ कर, 31 या 21 व्रत करें। श्वेत वस्त्र धारण करके बीज मंत्र ‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः&#8217; की 3 या 21 माला जपें। भोजन में चावल, खाण्ड या दूध से बने पदार्थ ही सेवन करें। यही पदार्थ यथाशक्ति संभव हो तो एक ही एकाक्षी (एक आंख वाले) भिक्षुक या ब्राह्मण को श्वेत गाय दें।
शुक्रवार (Shukravar Vrat) के व्रत के दिन अपने मस्तक में श्वेतचन्दन का तिलक करें। शुक्र देव की प्रतिमा अथवा शुक्र ग्रह के यंत्र को स्वर्ण पत्र, रजतपत्र, ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति शुक्र देव (Shukra Dev) के मंत्र का जाप करना चाहिए।
शुक्र ग्रह शांति का सरल उपचारः- सफेद वस्त्र, सफेद रुमाल, सफेद फूल धारण करना आदि, गाय को हरा घास या पेड़ा देना, शिवपूजन।

शुक्रवार व्रत उद्यापन विधि |

शुक्रवार के व्रत के उद्यापन के लिए यथासंभव बृहस्पति ग्रह का दान जैसे हीरा, सुवर्ण, रजत, चावल, मिसरी, दूध, श्वेतवस्त्र, सुगंध, श्वेतपुष्प, दधि, श्वेतघोड़ा, श्वेतचन्दन आदि करना चाहिए। शुक्र ग्रह से संबंधित दान के लिए सूर्योदय का समय सर्वश्रेष्ठ होता है क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा। शुक्र ग्रह के मंत्र ‘‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः&#8221; का कम से कम 16000 की संख्या में जाप तथा शुक्र ग्रह की लकड़ी उदुम्बर से शुक्र ग्रह के बीज मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए।
हवन-पूर्णाहुति के बाद खीर-खाण्ड से बने पदार्थ ब्राह्मणों को खिलाएं। चांदी, श्वेत वस्त्र, खाण्ड, चावल का दान करें। इस व्रत से स्त्री सुख एवं ऐश्वर्या की वृद्धि होती है।
देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए।

शुक्रवार व्रत कथा |

एक समय कायस्थ, ब्राह्मण और वैश्य इन तीनों लड़को में परस्पर गहरी मित्रता थी। उन तीनों का विवाह हो गया। ब्राह्मण और कायस्थ के लड़कों को गौना भी हो गया था, परंतु सेठ के लड़के का नहीं हुआ था। एक दिन कायस्थ के लड़के ने कहा-हे मित्र! तुम विदा कराके अपनी स्त्री को घर क्यों नहीं लाते? स्त्री के बिना घर कैसा बुरा लगता है। यह बात सेठ के लड़के को जंच गई। वह कहने लगा-मैं अभी जाकर उसे विदा करा ले आता हूं। ब्राह्मण के लड़के ने कहा-अभी मत जाओ क्योंकि शुक्र का अस्त्र हो रहा है, जब उदय हो जाए तब जाकर ले आना। परंतु सेठ के लड़के को ऐसी जिद्द हो गई कि किसी प्रकार से नहीं माना। जब उसके घर वालों ने सुना तो उन्होंने भी बहुत समझाया परंतु वह किसी प्रकार से नहीं माना और अपनी ससुराल चला गया।
उसको आया हुआ देखकर ससुराल वाले भी चकराये। पूछा-आपका कैसा आना हुआ वह कहने लगा-मैं विदा के लिए आया हूं। ससुराल वालों ने भी बहुत समझाया कि इन दिनों शुक्र का अस्त है, उदय होने पर ले जाना। परंतु उसने एक न सुनी और स्त्री को ले जाने का आग्रह करता रहा। जब वह किसी प्रकार माना तो उन्होंने लाचार होने दोनों को विदा कर दिया। थोड़ी देर जाने के बाद मार्ग में उसके रथ का पहिया टूट कर गिरा पड़ा। रथ के बैल का पैर टूट गया। उसकी स्त्री भी घायल हो गई। जैसे-तैसे आगे चला तो रास्ते में डाकू मिल गए। उसके पास जो धन, वस्त्र तथा आभूषण थे वे सब डाकुओं ने छीन लिए। इस प्रकार अनेक कष्टों का सामना करते हुए जब वे अपने घर पहुंचे तो आते ही सेठ के लड़के को सर्प ने काट लिया और वह मूर्छा खाकर गिर पड़ा। तब उसकी स्त्री अत्यंत विलाप कर रोने लगी। उसे वैद्यों को दिखलाया तो वैद्य कहने लगे-यह 3 दिन में मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा।
जब उसके मित्र ब्राह्मण के लड़के को पता लगा तो उसने कहा-सनातन धर्म की प्रथा है कि जिस समय शुक्र का अस्त हो तो कोई अपनी स्त्री को नहीं लाता। परंतु यह शुक्र के अस्त में स्थिति को विदा करा कर ले आया है इस कारण सारे विघ्न उपस्थित हुए हैं। यदि यह दोनों ससुराल में वापिस चले जाये, शुक्र के उदय होने पर पुनः आवें तो निश्चय ही विघ्न टल सकता है। इतना सुनते ही सेठ ने अपने पुत्र और उसकी स्त्री को शीघ्र ही उसकी ससुराल में वापिस पहुंचा दिया। पहुंचते ही सेठ के लड़के की मूर्छा दूर हो गई और फिर साधारण उपचार से वह सर्प-विष से मुक्त हो गया। अपने दामाद की स्वस्थ देखकर ससुराल वाले अत्यंत प्रसन्न हुए और जब शुक्र का उदय हुआ तब बड़े हर्ष पूर्वक उन्होंने अपनी पुत्री सहित विदा किया। इसके पश्चात वह दोनों पति-पत्नी घर आकर आनंद से रहने लगे। इस व्रत को करने से अनेक विघ्न दूर होते हैं।

शुक्रदेव से विनय |

हे शुक्रदेव बलशाली, मैं दुःखिया शरण तिहारी।
कर जोर करूं मैं विनती, प्रभु राखो लाज हमारी।।
दिनों के फेर ने प्रभु है बहुत सताया।
काम क्रोध मद लोभ ने है भरभाया।
बुद्धि रही चकराय, सुध-बुध है बिसारी।
हे शुक्र देव बलशाली, मैं दुःखिया शरण तिहारी।
मुशिकल है इन भीषण दुःखों में जीना।
फटा जा रहा है गमों से यह सीना।
टूट चुका हूं मेरे प्रभु, यह जीवन बाजी हारी।
हे शुक्रदेव बलशाली, मैं दुःखिया शरण तिहारी।
स्वामी शुक्र देव अपना दसम दिखा दो।
कृपा करो प्रभु मेरे कष्ट मिटा दो।
आया हूं मैं शरण आपकी, चरणों में बलहारी।
हे शुक्र देव बलशाली, मैं दुःखिया शरण तिहारी।

 

Top ten astrologers in India – get online astrology services from best astrologers like horoscope services, vastu services, services, numerology services, kundli services, online puja services, kundali matching services and Astrologer,Palmist & Numerologist healer and Gemstone,vastu, pyramid and mantra tantra consultant

Currency
Translate
X