मंगलवार व्रत कैसे करें मंगल ग्रह मन्त्र मंगल शांति पूजा से क्या लाभ है?

मंगलवार व्रत कैसे करें मंगल ग्रह मन्त्र मंगल शांति पूजा से क्या लाभ है?
June 11, 2025
मंगल ग्रह मन्त्र
मंगल दक्षिण दिशा का स्वामी है। रक्त वर्ण, अग्नि तत्व प्रधान, पुरुष जाति का ग्रह है और यह सूर्य की एक पूर्ण परिक्रमा 687 दिनों में करता है। यह एक राशि पर करीब डेढ़ मास तक रहता है। यह मेष तथा वृश्चिक राशि का स्वामी है। उसमें भी वृश्चिक राशि पर विशेष बली माना जाता है। मकर राशि में मंगल उच्च का तथा कर्क राशि में नीच हो जाता है। इसके नक्षत्र मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा है। सिंह, धनु, मीन इसकी मित्र राशियाँ है तथा कन्या एवं मिथुन इसकी शत्रु राशियाँ है। यह अपने स्थान से चौथे, सातवें और आठवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है, इसकी महादशा 7 वर्ष की होती है
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस ग्रह से ईमानदारी, अधिकारिक भावना, मानसिक आघात, बड़े भाई का सुख, गरीबी, चालाकी आदि का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा भूमि, जायदाद, कृषि, कला, धोखाधड़ी, कपट व्यवहार इत्यादि का अध्ययन भी इसी ग्रह से किया जाता है। यह धैर्य और पराक्रम का स्वामी ग्रह है। मनुष्य का अपने भाई बहनों के साथ कैसा व्यवहार रहता है इसकी जानकारी इसी ग्रह से की जाती है।
मंगल साधना कौन करे?
मंगल ग्रह को प्रसन्न करने के लिए साधना की जाती है। मंगल साधना आश्चर्यजनक रूप से उपयोगी और उपयोगी है, क्योंकि यह सकारात्मक प्रभाव को मजबूत करती है और बढ़ाती है तथा मंगल के प्रतिकूल प्रभावों को निष्क्रिय कर देती है। मंगल साधना उन लोगों के लिए वास्तव में उपयोगी है, जिनका मंगल खराब है या कुंडली के अनुसार मंगल गलत स्थिति में है। मंगल ग्रह को प्रसन्न करने के लिए साधना की जाती है। यदि आपका कोई गुप्त शत्रु है, गले की समस्या, यौन रोग, मोटापा और असफल जीवन है तो इसका मतलब है कि मंगल अनुकूल नहीं है।
यदि आपके जीवन में इस तरह की कोई समस्या आ रही है तो कहीं न कहीं मंगल ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है। मंगल ग्रह के अशुभ फल से बचने के लिए अन्य बहुत से उपाय है पर सभी उपायों में मन्त्र का उपाय सबसे अच्छा माना जाता है। इन मंत्रों का कोई नुकसान नहीं होता और इसके माध्यम से मंगल ग्रह के अनिष्ट से आसानी से पूर्णता बचा जा सकता है। इसका प्रभाव शीघ्र ही देखने को मिलता है।
किसी कारण वश आप यदि साधना न कर सके तो मंगल तांत्रोक्त मन्त्र की नित्य 5 माला लाल आसन पर बैठ कर मूंगे की माला से या रुद्राक्ष माला से जाप करें। तब भी मंगल घर का विपरीत प्रभाव शीघ्र समाप्त होने लग जाता है पर ऐसा देखा गया है कि मंत्र जाप छोड़ने के बाद फिर पुन: आपको मंगल ग्रह के अनिष्ट प्रभाव देखने को मिल सकते है इसलिए साधना करने का निश्चय करें तो ही अधिक अच्छा है। अगर आप साधना नहीं कर सकते तो किसी योग्य पंडित से करवा भी सकते है।
मंगल का रत्न:
रत्न विज्ञान के अनुसार मंगल ग्रह का रत्न मूंगा है। मंगलवार के दिन प्रातः काल सवा सात रत्ती का त्रिकोण मूंगा रत्न दाहिने हाथ की अनामिका (रिंगफिंगर) अंगुली में सोने या ताम्बे की अंगूठी में बनवाकर धारण करना चाहिये।
मंगल साधना विधान:
मंगल साधना गुरु पुष्य योग या किसी भी मंगल से प्रारम्भ कर सकते है। यह साधना प्रातः ब्रह्म मुहूर्त (4:24 से 6:00 बजे तक) या दिन में (11:30 से 12:36 के बीच) कर सकते है पर इस साधना को प्रातः करना ज्यादा अच्छा माना जाता है। इस साधना को करने के लिए साधक स्नान आदि से पवित्र होकर लाल रंग के वस्त्र धारण कर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछा दें। चौकी पर शिव (गुरु चित्र) चित्र या मूर्ति स्थापित कर मन ही मन शिव जी से साधना में सफलता हेतु आशीर्वाद प्राप्त करें।
शिव चित्र के सामने एक थाली रखें, उस थाली के बीच रोली से त्रिकोण बनाये, उस त्रिकोण में लाल मसूर की दाल भर दें। उसके ऊपर प्राण प्रतिष्ठा युक्त “मंगल यंत्र” स्थापित कर दें। यंत्र के सामने दीपक शुद्ध घी का जलाये फिर संक्षिप्त पूजन कर दाहिने हाथ में पवित्र जल लेकर विनियोग करें
विनियोग:
ॐ अस्य श्रीभौम मंत्रस्य गर्गऋषि:, मङगलोदेवता, त्रिष्टुप्छ्न्द:, ऋणापहरणे जपेविनियोग:
विनियोग के पश्चात् गुरु का ध्यान करें—
रत्नाष्टा पदवस्त्र राशिममलं दक्षात्किरंतं।
करा- दासीनं विपणौ करं निदधतं रत्नादिराशौ परम् ॥
पीता लेपन पुष्प वस्त्र मखिलालंकार संभूषितम्।
विद्या सागरपारगं सुरगुरुं वंदे सुवर्णप्रभम् ॥
ध्यान के पश्चात् साधक एक बार पुन: ‘मंगल यंत्र’ का पूजन कर, पूर्ण आस्था के साथ ‘लाल मूंगा माला’ से मंगल गायत्री मंत्र की एवं मंगल सात्विक मंत्र की एक-एक माला मंत्र जप करें-
मंगल गायत्री मंत्र:
॥ ॐ अङगरकाय विद्महे शक्ति हस्ताय धीमहि तन्नो भौम: प्रचोदयात् ॥
मंगल सात्विक मंत्र:॥
ॐ अं अंगारकाय नम: ॥
इसके बाद साधक मंगल तांत्रोक मंत्र की नित्य 23 माला 11 दिन तक जाप करे।
मंगल तांत्रोक्त मंत्र :
॥ ॐ क्रां क्रों क्रौं स: भौमाय नम: ॥
मंगल स्तोत्र:
नित्य मन्त्र जाप के बाद मंगल स्त्रोत का पाठ हिन्दी या संस्कृत में अवश्य करें-
रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्मुखो मेघगदी गदाधृक ।
धरासुत: शक्तिधरश्र्वशूली सदा मम स्याद्वरद: । प्रशान्त: ॥ 1 ॥
ॐ मङगलो भूमिपुत्रश्र्व ऋणहर्ता धनप्रद: ।
स्थिरात्मज: महाकाय: सर्वकामार्थसाधक: ॥ 2 ॥
लोहितो लोहिताङगश्र्व सामगानां कृपाकर: ।
धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन: ॥ 3 ।
अङगारकोतिबलवानपि यो ग्रहाणं स्वेदोद्धवस्त्रिनयनस्य पिनाकपाणे: ।
आरक्त चन्दनसुशीतलवारिणा योप्यभ्यचितोऽथ विपलां प्रददाति सिद्धिम ॥ 4 ॥
भौमो धरात्मज इति प्रथितः पृथिव्यां दु:खापहो दुरितशोकसमस्तहर्ता ।
नृणामृणं हरति तान्धनिन: प्रकुर्याद्द: पूजित: सकलमंगलवासरेषु ॥ 5 ॥
एकेन हस्तेन गदां विभर्ति त्रिशूलमन्येन ऋजुकमेण ।
शक्तिं सदान्येन वरं ददाति चतुर्भुजी मङगलमादधातु ॥ 6 ॥
यो मङगलमादधाति मध्यग्रहो यच्छति वांछितार्थम्।
धर्मार्थकामदिसुखं प्रभुत्वं कलत्र पुत्रैर्न कदा वियोग: ॥ 7 ॥
कनकमयशरीरतेजसा दुर्निरीक्ष्यो हुतवह समकान्तिर्मालवे लब्धजन्मा ।
अवनिजतनमेषु श्रूयते य: पुराणो दिशतु मम विभूतिं भूमिज: सप्रभाव: ॥ 8 ॥
स्तोत्र का भावार्थ:
लाल वस्त्र धारी, लाल देह युक्त, मुकुट पहने हुए, चार भुजा वाले, गदाधारी, भूमि पुत्र, शक्तिवान, त्रिशुल धारण किये हुए, शान्त चित भगवान मंगल मुझे सदैव वरदान दें॥1॥
मंगलकारी, भूमिपुत्र, ॠणदोष को हरने वाले, धनप्रदाता, स्थिर चित, विशाल देह वाले, भक्तों के सभी कार्यों को पूर्ण करने वाले, भगवान् मंगल को बारम्बार नमन करता हूं॥2॥
रक्तवर्ण, लाल रंग चाहने वाले, संगीत के कलाकारों पर कृपा करने वाले, भूमिपुत्र, वक्र देह वाले, ऐश्वर्य प्रदाता भूमिनन्दन, भगवान मंगल को नमन करता हूं ॥3॥
अग्नि के समान तेज युक्त, बलवान, पिनाकधारी भगवान् शंकर के वेग से उत्पन्न, लाल चन्दन तथा शीतल जल से भीगे हुए शरीर वाले, अत्यधिक सिद्धियों को देने वाले भगवान मंगल को प्रणाम॥4॥
भूमिपुत्र के नाम से संसार में प्रसिद्ध, भक्तों के दु:खों को हरण करने वाले, पाप जनित कष्टों को दूर करने वाले, भक्तों के ऋण बाधा को दूर करके, ऐश्वर्य देने वाले, जो समस्त शुभ कार्यो से पूजित हैं, ऐसे मंगल देव को प्रणाम करता हूं॥5॥
एक हाथ में गदा धारण किये हुए, दूसरे हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए, तीसरे हाथ में शक्ति धारी तथा चतुर्थ हाथ से भक्तों को सदैव वरदान देने वाले भगवान् मंगल को नमन करता हूं॥6॥
मंगल देव, भक्तों को निरंतर मंगल देने वाले, कामनाओं को देने वाले, धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्रदाता, ऐश्वर्य देने वाले तथा पुत्र-पौत्र से कभी भी वियुक्त नहीं करते॥7॥
स्वर्णमय देह के प्रकाश के कारण जो कठिनाई से देखे जाते हैं, अग्नि के समान कान्ति वाले, भूमि से उत्पन्न, भूमिपुत्र के नाम से प्रसिद्ध, शक्तिसम्पन्न, भगवान् मंगल ऐश्वर्य प्रदान करें॥8॥
मंगल ग्रह मन्त्र साधना की समाप्ति:
यह साधना ग्यारह दिन की है। साधना के बीच साधना नियम का पालन करें, भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन मंगल ग्रह मन्त्र जाप करें। नित्य जाप करने से पहले संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह दिन तक मंगल ग्रह मन्त्र का जाप करने के बाद मंत्र का दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन करें। हवन के पश्चात् यंत्र को अपने सिर से उल्टा सात बार घुमाकर दक्षिण दिशा में किसी निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दें। इस तरह से यह साधना पूर्ण मानी जाती है धीरे-धीरे मंगल अपना अनिष्ट प्रभाव देना कम कर देता है, मंगल से संबंधित दोष आपके जीवन से समाप्त हो जाते है।
मंगलवार व्रत विधि
यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) मंगलवार (Mangalvar) से प्रारम्भ करके 21 या 45 व्रत करने चाहिए। हो सके तो यह व्रत आजीवन रखें। बिना सिला हुआ लाल वस्त्र धारण करके बीज मंत्र ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’की 1, 5, या 7 माला जप करें। इस व्रत में नमक का सेवन वर्जित है। उस दिन गुड़ से बने हलवे का या लड्डूओं का दान करें और स्वयं भी खाएं। गुड़ से बना कुछ हलवा आदि बैल को भी खिलाएं। मंगलवार (Tuesday) के व्रत के दिन अपने मस्तक में लालचन्दन का तिलक करें। मंगल देव (Mangal Dev) की प्रतिमा अथवा मंगल ग्रह के यंत्र को स्वर्ण पात्र रजत पात्र ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति मंगल देव के मंत्र का जाप करना चाहिए। मंगल शान्ति का सरल उपचारः लालरंग की वस्तुओं का उपयोग, रात को लाल वस्त्र पहनें, तांबे के बर्तनों का प्रयोग, तांबे की अंगूठी पहनना। मंगलवार व्रत उद्यापन विधि |
मंगलवार (Mangalvar) के व्रत के उद्यापन के लिए यथासंभव मंगल ग्रह का दान जैसे मूंगा, सुवर्ण, ताम्र, मसूर, गुड़, घी, रक्तवस्त्र, केसर, रक्तकनेर, कस्तूरी, रक्तबैल, रक्तचन्दनआदि करना चाहिए मंगल ग्रह से संबंधित दान के लिए घटी 2 शेषदिन का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा। मंगल ग्रह के मंत्र ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’ का कम से कम 10000 की संख्या में जाप तथा मंगल ग्रह की लकड़ी खदिर से मंगल ग्रह के बीज मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए। हवन पूर्णाहुति करके लाल वस्त्र, तांबा, मसूर, गुड़, गेहूं तथा नारियल का दान करें। ब्राह्मणों तथा बच्चों को मीठा भोजन कराएं। मंगलवार (Mangalvar) का व्रत ऋणहर्ता तथा सन्तति-सुख प्रद है। देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए। मंगलवार व्रत कथा |
Mangalvar Vrat Vidhi
एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। वह मंगल देवता को अपना इष्ट देवता मानकर सदैव मंगलवार को व्रत रखती और मंगल देव का पूजन किया करती थी। उसका एक पुत्र था जो मंगलवार को उत्पन्न हुआ था। इस कारण उसको मंगलिया के नाम से पुकारा करती थी। मंगलवार (Mangalvar) के दिन वह न तो घर को लीपती और न ही पृथ्वी ही खोदती थी। एक दिवस मंगल देवता उसकी श्रद्धा को देखने के लिए उसके घर में साधु का रूप बनाकर आए और द्वार पर आवाज दी। बुढ़िया ने कहा-महाराज क्या आज्ञा है। साधु कहने लगा, बहुत भूख लगी है भोजन बनाना हैं। इसके लिए तू थोड़ी सी पृथ्वी लीप दे तो तेरा पुण्य होगा। यह सुनकर बुढ़िया ने कहा-महाराज, आज मंगलवार की व्रती हूँ इसलिए मैं चौका नहीं लगा सकती। कहो तो जल का छिड़काव कर दूं। उस जगह भोजन बना लेना, या फिर मैं आपके लिए भोजन बना देती हूं। साधु कहने लगा-मैं गोबर से लीपे चौके पर ही खाना बनाता हूं। बुढ़िया ने कहा-पृथ्वी लीपने के सिवाय और कोई सेवा हो तो मैं सब-कुछ करने के लिए तैयार हूं परंतु गोबर से लीपुंगी नहीं। तब साधु ने कहा कि सोच-समझकर उत्तर दो, जो कुछ भी मैं कहूंगा, वह तुमको करना होगा। बुढ़िया कहने लगी-महाराज ! पृथ्वी लीपने के अलावा जो भी आज्ञा करेंगे उसका पालन अवश्य करूंगी। बुढ़िया ने ऐसा तीन बार वचन दे दिया। तब साधु कहने लगा-तू अपने लड़के को बुलाकर औंधा लिटा दे मैं उसकी पीठ पर भोजन बनाऊंगा। साधु की बात सुनकर बुढ़िया चुप हो गई। तब साधु ने कहा- बुलाले लड़के को, अब सोच-विचार क्या करती है? बुढ़िया मंगलिया, मंगलिया कहकर पुकारने लगी। थोड़ी देर बाद लड़का आ गया। बुढ़िया ने कहा जा-बेटे तुझको बाबाजी बुलाते हैं। लड़के ने बाबाजी से जाकर पूछा कि क्या आज्ञा है महाराज? बाबा जी ने कहा-जाओ और अपनी माताजी को बुला लाओ। जब माता आ गई तो साधु ने कहा-तू ही इसको लिटा दे। बुढ़िया ने मंगल देवता का स्मरण करते हुए अपने लड़के को औंधा लिटा दिया और उसकी पीठ पर अंगीठी रख दी। बुढ़िया कहने लगी-हे महाराज ! अब जो कुछ आपको करना है कीजिए। मैं जाकर अपना काम करती हूं। साधु ने लड़के की पीठ पर रखी हुई अंगीठी में आग जलाई और उस पर भोजन बनाया। जब भोजन बन चुका तो साधु ने बुढ़िया से कहा-अब अपने लड़के को बुलाओ वह भी आकर ले जाए। बुढ़िया कहने लगी-यह कैसे आश्चर्य की बात है कि उसकी पीठ पर आपने आग जलाई और उसे ही प्रसाद के लिए बुलाते हैं। क्या यह संभव है। क्या अब भी आप उसको जीवित समझते हैं। आप कृपा करके उसका स्मरण भी मुझको न कराइये और भोग लगाकर जहां जाना हो जाइये। साधु के अत्यंत आग्रह करने पर बुढ़िया ने ज्यों ही मंगलिया कहकर आवाज लगाई त्यों ही लड़का एक ओर से दौड़ता हुआ आ गया। साधु ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा कि माई, तेरा व्रत सफल हो गया। तेरे हृदय में दया है और अपने इष्ट-देव में अटल श्रद्धा हैं। इसके कारण तुमको कोई भी कष्ट नहीं पहुंचेगा।
मंगलवार व्रत की दूसरी कथा |Mangalvar Vrat Katha 2
एक ब्राह्मण दम्पत्ति के कोई संतान न थी। इसके कारण पति-पत्नी दुःखी रहते थे। वह ब्राह्मण हनुमान जी की पूजा के हेतु वन में चला गया। वह पूजा के साथ महावीर जी के 1 पुत्र की कामना किया करता था। घर पर उसकी पत्नी मंगलवार का व्रत पुत्र की प्राप्ति के लिए किया करती थी। मंगल के दिन व्रत के अंत में भोजन बनाकर हनुमान जी का भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती थी। एक बार कुटुंब में विवाह के कारण ब्रह्मणी भोजन न बना सकी, अतः हनुमान जी का भोग भी नहीं लगा। वह अपने मन में ऐसा प्रण करके सो गई कि अब अगले मंगलवार को हनुमान जी का भोग लगाकर ही अन्न-पानी ग्रहण करूंगी। वह भूखी-प्यासी 6 दिन रही। मंगलवार के दिन तो उसे मूर्छा ही आ गई। तब हनुमान जी उसकी लगन और निष्ठा को देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे दर्शन दे सचेत किया और कहा-मैं तेरे से अति प्रसन्न हूं, मैं तुझको एक सुंदर बालक देता हूं जो तेरी बहुत सेवा करेगा। हनुमान जी द्वारा दिया गया सुंदर बालक पाकर ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुई। ब्राह्मणी ने बालक का नाम मंगल रखा। कुछ समय पश्चात ब्राह्मण वन से लौटकर आया। प्रसन्नचित्त सुंदर बालक को घर में क्रीड़ा करते देखकर वह ब्राह्मण पत्नी से बोला-यह बालक कौन है पत्नी ने कहा-मंगलवार के व्रत से प्रसन्न हो हनुमान जी ने दर्शन देकर मुझे यह बालक दिया है। पत्नी की बात छल से भरी जान उसने सोचा, यह कुलटा, व्यभिचारिणी अपनी कलुषता छुपाने के लिए बात बना रही है। एक दिन उसका पति कुएं पर पानी भरने चला तो पत्नी ने कहा कि मंगल को भी साथ ले जाओ। वह मंगल को साथ ले गया। बालक को कुएं में डाल कर वापस पानी भरकर घर आया तो पत्नी ने पूछा कि मंगल कहां है? तभी मंगल मुस्कुराता हुआ घर आ गया। उसको देख ब्राहमण आश्चर्यचकित रह गया। रात्रि में उस ब्राह्मण से हनुमान जी ने स्वप्न में कहा-यह बालक मैंने दिया है। पति यह जानकर हर्षित हुआ। वे पत्नी-पति मंगलवार का व्रत करते हुए और अपने जीवन को आनन्दपूर्वक व्यतीत करते हुए अंत में मोक्ष को प्रप्त हुए। मंगल वार की पावन आरती |
Mangalvar Aarti
मंगल मूरति जय जय हनुमंता, मंगल-मंगल देव अनंता। हाथ वज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे। शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन। लाल लंगोट लाल दोऊ नयना, पर्वत सम फारत है सेना। काल अकाल जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी। रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा। महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी। भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवावे। शत्रुन काट-काट महिं डारे, बंधन व्याधि विपत्ति निवारे। आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै। सब सुख लहैं तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना। तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा। रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुम्हरे परसि होत जब खण्डा। पवन पुत्र धरती के पूता, दोऊ मिल काज करो अवधूता। हर प्राणी शरणागत आए, चरण कमल में शीश नवाए। रोग शोक बहु विपत्ति घराने, दुख दरिद्र बंधन प्रकटाने। तुम तज और न मेटनहारा, दोऊ तुम हो महावीर अपारा। दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुख स्वप्न विनाशा। शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे। विपति हरन मंगल देवा, अंगीकार करो यह सेवा। मुद्रित भक्त विनती यह मोरी, देऊ महाधन लाख करोरी। श्रीमंगलजी की आरती हनुमत सहितासु गाई। होई मनोरथ सिद्ध जब अंत विष्णुपुर जाई। मंगल देव की सुगम आरती |
Mangal Dev Aarti
ॐ जय मंगल देवा, स्वामी जय मंगल देवा। भक्त आरती गावें, करें विविध भांती सेवा।। हठी मेष है वाहन आपका, पृथ्वी है माता। सुख समृद्धि के नायक, अतुल शांति दाता।। जब होता है कोप आपका, सब कुछ छीन जाता। जिस पर कृपा करो तुम स्वामी, सब कुछ है पाता। मंगल देव की आरती, जो सच्चे मन से गावे। रोग-शोक मिट जावे, अति सुख-वैभव पावे।।