बृहस्पति व्रत कैसे करें, सम्पूर्ण कथा पूजन और उद्यापन विधि गुरु ग्रह मन्त्र बृहस्पति ग्रह वैदिक मंत्र गुरु बृहस्पति वैदिक मंत्र

बृहस्पति व्रत कैसे करें, सम्पूर्ण कथा पूजन और उद्यापन विधि गुरु ग्रह मन्त्र बृहस्पति ग्रह वैदिक मंत्र गुरु बृहस्पति वैदिक मंत्र

बृहस्पति व्रत कैसे करें, सम्पूर्ण कथा पूजन और उद्यापन विधि गुरु ग्रह मन्त्र बृहस्पति ग्रह वैदिक मंत्र गुरु बृहस्पति वैदिक मंत्र

गुरु ग्रह मन्त्र
Jupiter Mantra

गुरु को देवताओं का गुरु माना गया है और यह राजस स्वभाव वाला पुरुष भाव ग्रह है। ज्योतिष के अनुसार गुरु शिक्षा, वाद-विवाद, धार्मिक कार्य, नेतृत्व, अध्ययन, राजकीय अधिकारी, लाभ कीर्ति, संतान सुख, उत्तम व्यवहार इत्यादि का कारक ग्रह है। यह पूर्व उत्तर दिशा का स्वामी तथा पित्त-वर्णीय आकाश तत्वीय ग्रह है
विंशोत्तरी महादशा में गुरु की महादशा 16 वर्ष की होती है तथा 10 वर्षो में यह भ्रमण करता हुआ उसी स्थान पर आ जाता है, जहां से प्रारंभ हुआ था। कर्क का गुरु उच्च का तथा मकर का गुरु नीच का माना जाता है। इसका सूर्य के साथ सात्विक व्यवहार, चन्द्रमा के साथ राजस व्यवहार तथा मंगल के साथ तामस व्यवहार रहता है। बुध और शुक्र के साथ गुरु शत्रुता पूर्ण प्रतिकूल व्यवहार देता है। यह धनु और मीन राशि का स्वामी है। अपने स्थान के अलावा पंचम, सप्तम और नवम भाव को पूर्ण दृष्टी से देखता है।

गुरु साधना कौन करे?

मूल रूप से गुरु शान्त ग्रह है पर इसके विपरीत प्रभाव से आकस्मिक शारीरिक कष्ट, नशा करना, धन हानि, पैसे को लेकर लडाई-झगड़ें, व्यापार में पैसा फंसना, मृत्यु, हाथ में पैसा न रुकना, घर में मांगलिक कार्य न होना, अगर स्त्री हो तो उसकी शादी न होना, अच्छा पति न मिलना या इच्छा से विवाह न होना, संतान कष्ट, पुत्र प्राप्ति न होना, अपमान, घर में क्लेश बना रहना, तनाव, आर्थिक तंगी, गरीबी, नौकरी न लगना, प्रमोशन न होना, व्यापार न चलना, बच्चों से नुकसान अर्थात बच्चें का बिगड़ना, अच्छी शिक्षा प्राप्त न होना, परीक्षा में फेल होना, गुप्त शत्रु होना, गले के रोग, गुप्त स्थानों के रोग, फोड़ा-फुंसी, पेट के रोग, गैस बनना शरीर में मोटापा, बीमारियों पर पैसा खर्चा होना, जीवन में असफलता आदि सब गुरु की महादशा, अंतर दशा, गोचर या गुरु के अनिष्ट योग होने पर होता है।
यदि आपके जीवन में इस तरह की कोई समस्या आ रही है तो कहीं न कहीं गुरु ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है। गुरु ग्रह के अशुभ फल से बचने के लिए अन्य बहुत से उपाय है पर सभी उपायों में मन्त्र का उपाय सबसे अच्छा माना जाता है। इन मंत्रों का कोई नुकसान नहीं होता और इसके माध्यम से गुरु ग्रह के अनिष्ट प्रभाव से पूर्णता बचा जा सकता है। इसका प्रभाव शीघ्र ही देखने को मिलता है।
किसी कारण वश आप यदि साधना न कर सके तो गुरु तांत्रोक्त मन्त्र की नित्य 5 माला पीले आसन पर बैठ कर हल्दी माला से या पीली हकीक माला से जाप करें। तब भी गुरु घर का विपरीत प्रभाव शीघ्र समाप्त होने लग जाता है पर ऐसा देखा गया है कि मंत्र जाप छोड़ने के बाद फिर पुन: आपको गुरु ग्रह अनिष्ट देखने को मिल सकता है इसलिए साधना करने का निश्चय करे तो ही अधिक अच्छा है। अगर आप साधना नहीं कर सकते तो किसी योग्य पंडित से करवा भी सकते है।

गुरु का रत्न:

रत्न विज्ञान के अनुसार गुरु ग्रह का रत्न पुखराज है और इसका उपरत्न सुन्हेला है। गुरुवार के दिन प्रातः काल सवा पांच रत्ती का पुखराज या सुन्हेला रत्न दाहिने हाथ की तर्जनी (अंगूठे के साथ वाली)अंगुली में सोने की अंगूठी बनवाकर धारण करना चाहिये।

गुरु ग्रह मन्त्र साधना विधान:

गुरु साधना को गुरु पुष्य योग या किसी भी बृहस्पतिवार से प्रारम्भ कर सकते है। यह साधना प्रातः ब्रह्म मुहूर्त (4:24 से 6:00 बजे तक) या दिन में (11:30 से 12:36 के बीच) कर सकते है पर इस साधना को प्रातः करना ज्यादा अच्छा माना जाता है। इसको करने के लिए साधक स्नान आदि से पवित्र होकर पीले रंग के वस्त्र धारण कर लें। ईशान(पूर्व और उत्तर के बीच) की दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछा दें।
चौकी पर शिव (गुरु) चित्र या मूर्ति स्थापित कर, मन ही मन शिव जी से साधना में सफलता हेतु आशीर्वाद प्राप्त करें। शिव चित्र के सामने एक थाली रखें, उस थाली के बीच हल्दी से स्वास्तिक बनाये, उस स्वास्तिक में पीली चने की दाल भर दें, उसके ऊपर प्राण प्रतिष्ठा युक्त “गुरु यंत्र’ स्थापित कर दें। यंत्र के सामने दीपक शुद्ध घी का जलाये फिर संक्षिप्त पूजन कर दाहिने हाथ में पवित्र जल लेकर विनियोग करें–

विनियोग:
ॐ अस्य बृहस्पतिवार मंत्रस्य, ब्रह्मा ऋषि: अनुष्टुप छन्द: सुराचार्यो देवता, बृं बीजम्, नम: शक्ति:, ममाभीष्ट सिद्धयेर्थे जपे विनियोग:
विनियोग के पश्चात् गुरु का ध्यान करें
रत्नाष्टा पद वस्त्र राशिमलं दक्षारित्करं करा दासीनं ।
विपणौ करं निदधतं रत्नादिराशौ परम् ॥
पीता लेपन पुष्प वस्त्र मखिलालंकार संभूषितम् ।
विद्या सागरपारगं सुरगुरुं वंदे सुवर्णप्रभम् ॥
ध्यान के पश्चात् साधक एक बार पुन: ‘गुरु यंत्र’ का पूजन कर, पूर्ण आस्था के साथ ‘पीली हकीक माला’ से गुरु गायत्री मंत्र की एवं गुरु सात्विक मंत्र की एक-एक माला मंत्र जप करें।

गायत्री मंत्र:

॥ ॐ आड़िगरसाय विद्दहे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो: जीव: प्रचोदयात् ॥
गुरु सात्विक मंत्र:
॥ ॐ ब्रं ब्रहस्पतये नम: ॥
इसके बाद साधक गुरु तांत्रोक मंत्र की नित्य 23 माला 11 दिन तक जाप करें।</p>
गुरु तांत्रोक्त मंत्र:
॥ ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम: ॥
गुरु स्तोत्र : नित्य मन्त्र जाप के बाद गुरु स्तोत्र का पाठ हिन्दी या संस्कृत में अवश्य करें-</p>
क्रौं शक्रादि देवै: परिपूजितोसि त्वं जीवभूतो जगतो हिताय।
ददाति यो निर्मलशास्त्र बुद्धिं स वाक्पतिर्मे वितनोतु लक्ष्मीम् ॥1॥
पीताम्बर: पीतवपु: किरीटश्र्वतुर्भजो देव गुरु: प्रशांत:।
दधाति दण्डं च कमण्डलुं च तथाक्षसूत्रं वरदोस्तु महम् ॥2॥
ब्रहस्पति: सुराचार्यो दयावानछुभलक्षण:।
लोकत्रयगुरु: श्रीमान्सर्वज्ञ: सर्वतो विभु: ॥3॥
सर्वेश: सर्वदा तुष्ठ: श्रेयस्क्रत्सर्वपूजित: ।
अकोधनो मुनिश्रेष्ठो नितिकर्ता महाबल: ॥4॥
विश्र्वात्मा विश्र्वकर्ता च विश्र्वयोनिरयोनिज:।
भूर्भुवो धनदाता च भर्ता जीवो जगत्पति: ॥5॥
पंचविंशतिनामानि पुण्यानि शुभदानि च।
नन्दगोपालपुत्राय भगवत्कीर्तितानि च ॥6॥
प्रातरुत्थाय यो नित्यं कीर्तयेत्तु समाहितः ।
विप्रस्तस्यापि भगवान् प्रीत: स च न संशय: ॥7॥
तंत्रान्तरेपि नम: सुरेन्द्रवन्धाय देवाचार्याय ते नम: ।
नमस्त्त्वनन्तसामर्थ्य वेद सिद्वान्तपारग ॥8॥
सदानन्द नमस्तेस्तु नम: पीड़ाहराय च।
नमो वाचस्पते तुभ्यं नमस्ते पीतवाससे ॥9॥
नमो ऽद्वितियरूपाय लम्बकूर्चाय ते नम:।
नम: प्रहष्टनेत्राय विप्राणां पतये नम: ॥10॥
नमो भार्गवशिष्याय विपन्नहितकारक।
नमस्ते सुरसैन्याय विपन्नत्राणहेतवे ॥11॥
विषस्थस्तथा न्रणां सर्वकष्टप्रणाशमन्।
प्रत्यहं तु पठेधो वै तस्यकामफलप्रदम् ॥12॥

गुरु स्तोत्र भावार्थ:

हे गुरु बृहस्पति देव आप इन्द्रादि देवों के सुपूजित हैं, संसार के कल्याण के लिए नर रूप में अवतरित होते हैं, जो अपने भक्तों को निर्मल शास्त्र बुद्धि प्रदान करते हैं, भगवान् बृहस्पति मुझे ऐश्वर्य लक्ष्मी प्रदान करें।॥ 1॥
पीत वस्त्र पहने हुए पीतवपु, मुकुटधारी, चार भुजा वाले, देवों के गुरु, शांत चित वाले, दण्ड, कमंडलु तथा यगोपवितधारी बृहस्पति देव मुझे सदैव वरदान देते रहें।॥ 2॥
देव गुरु, दयालु, शुभ लक्षणों से युक्त, तीनों लोक के गुरु, ऐश्वर्य सम्पन्न, सर्वज्ञ व्यास रहने वाले सदैव मेरी रक्षा करें॥ 3॥
सभी प्राणियों के अधिपति, सदैव प्रसन्न रहने वाले, सभी का कल्याण करने वाले, सभी प्राणियों द्वारा सत्कृत, क्रोध रहित, मुनिश्रेष्ठ, नीतिकर्ता, बलशाली मेरी सदैव रक्षा करें॥4॥
विश्व के आत्मस्वरुप, संसार के कर्ता, जो स्वयं अयोनिज है, भूलोक तथा स्वर्ग लोक में उपस्थित रहने वाले, धनदाता, संसार अधिपति तथा सभी प्राणियों के भरण करने वाले है।॥5॥
गुरु ब्रहस्पति के 25 नाम पवित्र और कल्याणकारी है। भगवान कृष्ण को भी प्रिय लगने वाले इन नामों का जो साधक प्रतिदिन उच्चारण करते है, भगवान नन्दगोपाल उस पर प्रसन्न होते है।॥6॥
जो नित्य प्रति गुरु की कीर्ति का पाठ करता है, उससे भगवान भी प्रसन्न होते है इसमें कोई संशय नहीं है।॥7॥
वेद वेदान्त के ज्ञाता, अनंत सामर्थ्य युक्त आपको नमन हो, देवों द्वारा वन्दित तथा पूजित गुरु ब्रहस्पति को बारम्बार नमन हो।॥8॥
सदैव भक्तों को आनन्द देने वाले, सभी पीडाओं को दूर करने वाले, पीतवस्त्र धारी, ब्रहस्पति देव गुरु को नमन करता हूँ।॥9॥
मैं गुरु के द्वितीय रूप जो गणेश आचार्य स्वरुप है तथा जो अपने नेत्रों के द्रष्टिपान से ब्रह्म उपासकों के पापों का नाश करते है उन्हें नमन करता हूँ।॥10॥
भार्गव के शिष्य, दुखियों के दुःख को दूर करने वाले, दैव सैन्य की रक्षा करने वाले आपको नमन हो।॥11॥
विषम स्थान में फंसे हुए साधकों के कष्ट निवारण करने वाले ब्रहस्पति के इस स्तोत्र का जो प्रतिदिन पाठ करता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।॥12॥

गुरु ग्रह मन्त्र साधना की समाप्ति:

यह ग्यारह दिन की साधना है। साधना के बीच साधना नियम का पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन गुरु ग्रह मन्त्र जप करें। नित्य जाप करने से पहले संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह दिन तक गुरु ग्रह मन्त्र का जाप करने के बाद मंत्र का दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन करें। हवन के पश्चात् यंत्र को अपने सिर से उल्टा सात बार घुमाकर दक्षिण दिशा में किसी निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दें। इस तरह से यह साधना पूर्ण मानी जाती है। धीरे-धीरे गुरु अपना अनिष्ट प्रभाव देना कम कर देता है, गुरु से संबंधित दोष आपके जीवन से समाप्त हो जाते है।

बृहस्पति ग्रह वैदिक मंत्र
गुरु बृहस्पति वैदिक मंत्र

बृहस्पति व्रत का महात्म्य एवं विधि-विधान, व्रत कथा

देव गुरु बृहस्पति देव जी विद्या, बुद्धि, धन-वैभव, मान सम्मान, यश-पद और पुत्र-पोत्र प्रदाता, अत्यंत दयालु देवता है। नव ग्रहों में सबसे बड़े और शक्तिशाली तथा देवताओं के गुरु होने के नाते बृहस्पति देव के निमित्त व्रत और पूजा करने पर अन्य सभी ग्रह और देवता भी हम पर कृपालु बने रहते हैं। इनका वाहन हाथी है और हाथों में शंख एवं पुस्तक के साथ-साथ त्रिशूल भी धारण करते हैं। देव गुरु बृहस्पति जी के शरीर का रंग सोने जैसा पीला है और पीले वस्त्र एवं भरपूर स्वर्ण आभूषण धारण करते हैं। इनके पूजन में पीले फूलों, हल्दी में रंगे हुए चावल, रोली के स्थान पर पीसी हुई हल्दी और प्रसाद के रूप में पानी में भीगी हुई चने की दाल अथवा बेसन के लड्डूओं का प्रयोग किया जाता है। व्रत करने वाले साधक को भी पीले वस्त्र तथा पीली वस्तुओं का प्रयोग तथा पीला भोजन ही करना चाहिए।

बृहस्पति व्रत विधि |

यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) गुरुवार से आरंभ करें। तीन वर्षपर्यन्त या 16 व्रत करें। उस दिन पीतवस्त्र धारण करके बीज मंत्र की 11 या 3 माला जप करें। पीतपुष्पों से पूजन अर्घ्य दानादि के बाद भोजन में चने के बेसन की घी-खाण्ड से बनी मिठाई, लड्डू या हल्दी से पीले या केसरी चावल आदि ही खाएं और इन्हीं का दान करें।
बृहस्पतिवा के व्रत के दिन अपने मस्तक में हल्दी का तिलक करें। हल्दी में रंगे चावलों अथवा चने की दाल की वेदी बनाकर और उस पर रेशमी पीला वस्त्र बिछाकर बृहस्पति देव की प्रतिमा अथवा बृहस्पति ग्रह के यंत्र को स्वर्णपत्र, रजतपत्र, ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति बुध देव के मंत्र का जाप करना चाहिए।

बृहस्पतिवार व्रत उद्यापन विधि |

बृहस्पतिवार के व्रत के उद्यापन के लिए यथासंभव बृहस्पति ग्रह का दान जैसे पुखराज, सुवर्ण, कांसी, दालचने, खांड, घी, पीतवस्त्र, हल्दी, पीतपुष्प, पुस्तक, घोड़ा, पीतफल आदि करना चाहिए बृहस्पति ग्रह से संबंधित दान के लिए सन्धया का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा।
बृहस्पति ग्रह के मंत्र ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः का कम से कम 19000 की संख्या में जाप तथा बृहस्पति ग्रह की लकड़ी अश्वत्थ से बृहस्पति ग्रह के बीज मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए
देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए।
हवन पूर्णाहुति के बाद ब्राह्मण व बटुको को लड्डू भोजन कराएं। स्वर्ण, पीत वस्त्र, चने की दाल आदि का दान करें। यह व्रत विद्यार्थियों के लिए बुद्धि तथा विद्याप्रद है। धन की स्थिरता तथा यश वृद्धि करता है। अविवाहितों के लिए स्त्री प्राप्तिप्रद सिद्ध होता है।
बृहस्पति ग्रह शांति का सरल उपचारः- पीले वस्त्र, रुमाल आदि, पीले फूल धारण करना, सोने की अंगूठी पहनना।

बृहस्पति व्रत कथा |1

अत्यंत प्राचीन काल की बात है। एक गांव में एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी रहते थे। वे अत्यंत निर्धन तो थे ही, उनके कोई संतान भी नहीं थी। वह ब्राह्मणी बहुत मलीनता से रहती थी। वह न तो स्नान करती और न ही किसी देवता का पूजन। प्रातःकाल उठते ही सर्वप्रथम भोजन करती, बाद में कोई अन्य कार्य करती थी। इससे ब्राह्मण देवता बड़े दुखी थे। बेचारे बहुत कुछ कहते थे किंतु उसका कोई परिणाम न निकला। भगवान की कृपा से ब्राह्मण की स्त्री के कन्या रूपी रत्न पैदा हुआ और वह कन्या अपने पिता के घर में बड़ी होने लगी। वह बालिका प्रतिदिन पूजा और प्रत्येक बृहस्पति (Brihaspati) को व्रत करने लगी। अपने पूजा-पाठ को समाप्त करके स्कूल जाती तो मुट्ठी में जौं भरकर ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती। बाद में ये जौं स्वर्ण के हो जाते और वह लौटते समय उनको बीनकर घर ले आती। एक दिन वह बालिका सूप में उन सोने के जौंओं को फटक रही थी। उसके पिता ने देखा और कहा-बेटी! सोने की जौंओं को फटकने के लिए तो सोने का सूप होना चाहिए। दूसरे दिन गुरुवार था। उस कन्या ने व्रत रखा और बृहस्पति देव से प्रार्थना करके कहा-हे प्रभो! मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो। बृहस्पति देव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। रोजाना की तरह वह कन्या जौं फैलाती हुई जाने लगी। जब लौटकर जौं बीन रही थी तो बृहस्पति (Brihaspati) की कृपा से उसे सोने का सूप मिला। उसे वह घर ले आई और उससे जौं साफ करने लगी। परंतु उसकी मां का वही ढंग रहा।
एक दिन की बात है कि वह कन्या सोने के सूप में सोने के जौं साफ कर रही थी। उस समय शहर का राजपूत्र वहां होकर निकला। इस कन्या के रूप और रंग को देखकर वह मोहित हो गया तथा अपने घर आकर भोजन तथा जल त्याग कर उदास हो लेट गया। राजा को इस बात का पता लगा तो मंत्रियों के साथ उसके पास आये और बोले-हे बेटा! तुम्हें किस बात का कष्ट है। किसी ने अपमान किया हो अथवा कोई और कारण हो सो कहो। मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता हो। राजकुमार अपने पिता की बातें सुनकर बोला-मुझे आपकी कृपा से किसी बात का दुःख नहीं है। किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है। परंतु मैं उस लड़की के साथ विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में सोने के जौ साफ कर रही थी।
यह सुनकर राजा आश्चर्य में पड़ गया और बोला-हे बेटा! इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ, मैं उसके साथ विवाह अवश्य करवा दूंगा। राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बतला दिया। तब राजा का प्रधानमंत्री उस लड़की के घर गया और ब्राह्मण की उस कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया।
कन्या के घर से जाते ही पहले की भांति उस ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी आ गई। अब भोजन के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिलता था। एक दिन दुःखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गये। बेटी ने पिता की दुःखी अवस्था को देखा और अपनी मां का हाल पूछा। तब ब्राह्मण ने सभी हाल कहा। कन्या ने बहुत- सा धन देकर पिता को विदा कर दिया। इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय सुख पूर्वक व्यतीत हुआ। कुछ दिन बाद वही हाल हो गया। ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के यहां गया और सभी हाल बताया। तब लड़की बोली-हे पिताजी! आप माताजी को यहां लिवा लाओ, मैं उन्हें विधि बता दूंगी। जिसे गरीबी दूर हो जाएगी। वह ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को लेकर पुत्री के घर पहुंचे तो पुत्री अपनी मां को समझाने लगी-हे मां! तुम प्रातःकाल उठकर प्रथम स्नानादि करके भगवान् का पूजन करो तो सब् दरिद्रता दूर हो जाएगी। लेकिन उसकी मां ने एक भी बात नहीं मानी और प्रातःकाल उठते ही अपनी पुत्री के बच्चों का झूठन खा लिया। एक दिन उसकी पुत्री को बहुत गुस्सा आया। उसमें उस रात कोठरी से सभी सामान निकाला और अपनी मां को उसमें बंद कर दिया। प्रातःकाल उसमें से निकाला तथा स्नानादि कराके पाठ करवाया तो उसकी मां की बुद्धि ठीक हो गई। फिर तो वह प्रत्येक बृहस्पति को व्रत रखने लगी। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मां भी बहुत धनवान तथा पुत्रवती हो गई और बृहस्पति देव जी के प्रभाव से वे दोनों इस लोक में सभी सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुए।

बृहस्पतिवार व्रत की दूसरी कथा

किसी गांव में एक साहूकार रहता था, जिसके घर में अन्न, वस्त्र और धन किसी की कोई कमी नहीं थी। परंतु उसकी स्त्री बहुत ही कृपण थी। किसी भिक्षार्थी को कुछ नहीं देती थी, सारे दिन घर में कामकाज में लगी रहती। एक समय एक साधु-महात्मा बृहस्पतिवार के दिन उसके द्वार पर आये और भिक्षा की याचना की। स्त्री उस समय घर का आंगन लीप रही थी, इस कारण साधु महाराज से कहने लगी कि महाराज इस समय तो मैं लीप रही हूं आपको कुछ नहीं दे सकती, फिर किसी दिन का अवकाश के समय आना। साधु महात्मा खाली हाथ चले गये। कुछ दिन के पश्चात वही साधु महाराज आये और उसी तरह भिक्षा मांगी। साहूकारनी उस समय लड़के को खिला रही थी। कहने लगी-महाराज, मैं क्या करूं? अवकाश नहीं है, इसलिए आपको भिक्षा नहीं दे सकती। तीसरी बार महात्मा आए तो उसने उन्हें उसी तरह टालना चाहा, परंतु महात्मा जी कहने लगे कि यदि तुम को बिल्कुल ही अवकाश हो जाए तो मुझको भिक्षा दोगी? साहूकारनी कहने लगी-हां महाराज ! यदि ऐसा हो जाये तो आपकी बहुत कृपा होगी। साधु-महात्मा जी कहने लगे कि अच्छा मैं एक उपाय बताता हूं। तुम बृहस्पतिवार को दिन चढ़ने पर उठना और सारे घर के झाड़ू लगाकर कूड़ा एक कोने में जमा कर रख देना। घर में चौक इत्यादी मत लगाना। घर वालों से कह दो, उस दिन सब हजामत अवश्य बनवाएं। रसोई बनाकर चूल्हे के पीछे रखा करो, सामने कभी न रखो। सायंकाल को अंधेरा होने के बाद दीपक जलाया करो तथा बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र मत धारण करो, न पीले रंग की चीजों का भोजन करो। यदि ऐसा करोगी तो तुम को घर का कोई काम नहीं करना पड़ेगा।
साहूकारनी ने ऐसा ही किया। बृहस्पतिवार को दिन चढ़े उठी, झाड़ू लगाकर कूड़े को घर में जमा कर दिया। पुरुषों ने हजामत बनवाई। भोजन बनाकर चूल्हे के पीछे रखा। वह कई बृहस्पतिवारों तक ऐसा ही करती रही। इससे कुछ काल बाद उसके घर में खाने को दाना न रहा। थोड़े दिनों बाद वही महात्मा फिर आये और भिक्षा मांगी। सेठानी ने कहा-महाराज, मेरे घर में खाने को अन्न ही नहीं, आपको क्या दे सकती हूं। तब महात्मा ने कहा कि जब तुम्हारे घर में सब कुछ था तब भी तुम कुछ नहीं देती थी।
अब पूरा-पूरा अवकाश है तब भी कुछ नहीं दे रही हो, तुम क्या चाहती हो वह कहो तब सेठानी ने कहा हाथ जोड़कर प्रार्थना की-हे महाराज! अब कोई ऐसा उपाय बताओ कि मेरे पहले जैसा धन-धान्य हो जाये। अब मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि अवश्यमेव जैसा आप कहोगे वैसा ही करूंगी। तब महाराज जी ने कहा-बृहस्पतिवार को प्रातःकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त हो घर को गौ के गोबर से लीपो तथा घर के पुरुष हजामत न बनवायें। भूखों को अन्न-वस्त्र देती रहा करो। ठीक सायंकाल दीपक जलाओ। यदि ऐसा करोगी तो तुम्हारी सब मनोकामनाएं भगवान बृहस्पति जी की कृपा से पूर्ण होगीं, सेठानी ने ऐसा ही किया और उसके घर में धन-धान्य वैसा ही हो गया जैसे कि पहले था। इस प्रकार भगवान बृहस्पति देव की कृपा से अनेक प्रकार के सुख भोगती हुई है त्रिकाल तक वह दीर्घकाल तक जीवित रही और अंत में मोक्ष प्राप्त हुई।

बृहस्पति देव की आरती

ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो-सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

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