एहि मुरारे कुञ्जबिहारे एहि प्रणतजनबन्धो।

एहि मुरारे कुञ्जबिहारे एहि प्रणतजनबन्धो।

यह एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है “हे मुरारी, हे कुंजबिहारी, हे प्रणतजनों के बंधु, आइए।” यह गीत गोविंद से लिया गया एक प्रसिद्ध श्लोक है, जिसे जयदेव गोस्वामी ने लिखा था। इस श्लोक में, कवि भगवान कृष्ण से प्रार्थना कर रहा है कि वे उनके पास आएं। 

विस्तार में:
  • एहि:
    इसका अर्थ है “आइए” या “पधारिए”।
  • मुरारे:
    यह भगवान कृष्ण का एक नाम है, जिसका अर्थ है “मुर नामक राक्षस का वध करने वाला”।
  • कुञ्जबिहारे:
    इसका अर्थ है “कुंजों में विहार करने वाला” या “वन विहार करने वाला”। यह कृष्ण के वृन्दावन में लीलाओं का वर्णन करता है।
  • प्रणतजनबन्धो:

    इसका अर्थ है “प्रणाम करने वालों का मित्र” या “शरणागतों का रक्षक”।

    यह श्लोक भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और प्रेम की गहरी भावना को व्यक्त करता है। यह कृष्ण के भक्तों के लिए एक आह्वान है कि वे उनके पास आएं और उनकी कृपा प्राप्त करें। एहि मुरारे कुञ्जबिहारे एहि प्रणतजनबन्धो। हे माधव मधुमथन वरेण्य केशव करुणासिन्धो।।

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