Best Astrologer in India -Top Ten Astrologer, Pt.Tarun K. Tiwari


Best Astrologer in India -Top Ten Astrologer, Pt.Tarun K. Tiwari
June 19, 2019
भारतीय ज्योतिष में कुंडली के पहले घर को लग्न भाव अथवा लग्न भी कहा जाता है तथा भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार इसे कुंडली के बारह घरों में सबसे महत्त्वपूर्ण घर माना जाता है। किसी भी व्यक्ति विशेष के जन्म के समय उसके जन्म स्थान पर आकाश में उदित राशि को उस व्यक्ति का लग्न माना जाता है तथा इस राशि अर्थात लग्न अथवा लग्न राशि को उस व्यक्ति की कुंडली बनाते समय पहले घर में स्थान दिया जाता है तथा इसके बाद आने वाली राशियों को कुंडली में क्रमश: दूसरे, तीसरे — बारहवें घर में स्थान दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति के जन्म के समय आकाशमंडल में मेष राशि का उदय हो रहा है तो मेष राशि उस व्यक्ति का लग्न कहलाएगी तथा इसे उस व्यक्ति की जन्म कुंडली के पहले घर में स्थान दिया जाएगा तथा मेष राशि के बाद आने वाली राशियों को वृष से लेकर मीन तक क्रमश: दूसरे से लेकर बारहवें घर में स्थान दिया जाएगा।
किसी भी कुंडली में लग्न स्थान अथवा पहले घर का महत्त्व सबसे अधिक होता है तथा कुंडली धारक के जीवन के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में इस घर का प्रभाव पाया जाता है। कुंडली धारक के स्वभाव तथा चरित्र के बारे में जानने के लिए पहला घर विशेष महत्त्व रखता है तथा इस घर से कुंडली धारक की आयु, स्वास्थ्य, व्यवसाय, सामाजिक प्रतिष्ठा तथा अन्य कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के बारे में पता चलता है। कुंडली का पहला घर शरीर के अंगों में सिर, मस्तिष्क तथा इसके आस-पास के हिस्सों को दर्शाता है तथा इस घर पर किसी भी बुरे ग्रह का प्रभाव शरीर के इन अंगों से संबंधित रोगों, चोटों अथवा परेशानियों का कारण बन सकता है।
कुंडली का पहला घर हमें पिछले जन्मों में संचित किए गए अच्छे-बुरे कर्मों तथा वर्तमान जीवन में इन कर्मों के कारण मिलने वाले फलों के बारे में भी बताता है। यह घर व्यक्ति की सामाजिक प्राप्तियों तथा उसके व्यवसाय तथा जीवन में उसके अपने प्रयासों से मिलने वाली सफलताओं के बारे में भी बताता है।
पहले घर से व्यक्ति के वैवाहिक जीवन, सुखों के भोग, बौद्धिक स्तर, मानसिक विकास, स्वभाव की कोमलता अथवा कठोरता तथा अन्य बहुत सारे विषयों के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है। पहला घर व्यक्ति के स्वाभिमान तथा अहंकार की सीमा भी दर्शाता है। कुंडली के पहले घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक के जीवन के लगभग किसी भी क्षेत्र में समस्या का कारण बन सकता है तथा कुंडली के पहले घर पर एक या एक से अधिक अच्छे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक के जीवन के किसी भी क्षेत्र में बड़ी सफलताओं, उपलब्धियों तथा खुशियों का कारण बन सकता है। इस लिए किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखते समय उसकी कुंडली के पहले घर तथा उससे जुड़े समस्त तथ्यों पर बहुत ही ध्यानपूर्वक विचार करना चाहिए।
कुंडली के दूसरे घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में धन स्थान कहा जाता है तथा किसी भी व्यक्ति की कुंडली में इस घर का अपना एक विशेष महत्त्व होता है। इसलिए किसी कुंडली को देखते समय इस घर का अध्ययन बड़े ध्यान से करना चाहिए। कुंडली का दूसरा घर कुंडली धारक के द्वारा अपने जीवन काल में संचित किए जाने वाले धन के बारे में बताता है तथा इसके अतिरिक्त यह घर कुंडली धारक के द्वारा संचित किए जाने वाले सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात तथा इसी प्रकार के अन्य बहुमूल्य पदार्थों के बारे में भी बताता है। किन्तु कुंडली का दूसरा घर केवल धन तथा अन्य बहुमूल्य पदार्थों तक ही सीमित नहीं है तथा इस घर से कुंडली धारक के जीवन के और भी बहुत से क्षेत्रों के बारे में जानकारी मिलती है।
कुंडली का दूसरा घर व्यक्ति के बचपन के समय परिवार में हुई उसकी परवरिश तथा उसकी मूलभूत शिक्षा के बारे में भी बताता है। कुंडली के दूसरे घर के मजबूत तथा बुरे ग्रहों की दृष्टि से रहित होने की स्थिति में कुंडली धारक की बाल्यकाल में प्राप्त होने वाली शिक्षा आम तौर पर अच्छी रहती है। किसी भी व्यक्ति के बाल्य काल में होने वाली घटनाओं के बारे में जानने के लिए इस घर का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है। कुंडली के दूसरे घर से कुंडली धारक की खाने-पीने से संबंधित आदतों का भी पता चलता है। किसी व्यक्ति की कुंडली के दूसरे घर पर नकारात्मक शनि का बुरा प्रभाव उस व्यक्ति को अधिक शराब पीने की लत लगा सकता है तथा दूसरे घर पर नकारात्मक राहु का बुरा प्रभाव व्यक्ति को सिगरेट तथा चरस, गांजा जैसे नशों की लत लगा सकता है।
कुंडली का दूसरा घर व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के बारे में भी बताता है तथा इस घर से विशेष रूप से वैवाहिक जीवन की पारिवारिक सफलता या असफलता तथा कुटुम्ब के साथ रिश्तों तथा निर्वाह का पता चलता है। हालांकि कुंडली का दूसरा घर सीधे तौर पर व्यक्ति के विवाह होने का समय नहीं बताता किन्तु शादी हो जाने के बाद उसके ठीक प्रकार से चलने या न चलने के बारे में इस घर से भी पता चलता है। कुंडली के इसी घर से कुंडली धारक के वैवाहिक जीवन में अलगाव अथवा तलाक जैसी घटनाओं का आंकलन भी किया जाता है तथा व्यक्ति के दूसरे विवाह के योग देखते समय भी कुंडली के इस घर को बहुत महत्त्व दिया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के वैवाहिक जीवन से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण पक्षों के बारे में कुंडली के दूसरे घर से जानकारी प्राप्त होती है।
कुंडली का दूसरा घर धारक की वाणी तथा उसके बातचीत करने के कौशल के बारे में भी बताता है। शरीर के अंगों में यह घर चेहरे तथा चेहरे पर उपस्थित अंगों को दर्शाता है तथा कुंडली के इस घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने की स्थिति में कुंडली धारक को शरीर के इन अंगों से संबंधित चोटों अथवा बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। कुंडली का दूसरा घर धारक की सुनने, बोलने तथा देखने की क्षमता को भी दर्शाता है तथा इन सभी के ठीक प्रकार से काम करने के लिए कुंडली के इस घर का मज़बूत होना आवश्यक है।
कुंडली के दूसरे घर से धारक के धन कमाने की क्षमता तथा उसकी अचल सम्पत्तियों जैसे कि सोना, चांदी, नकद धन तथा अन्य बहुमूल्य पदार्थों के बारे में भी पता चलता है। कुंडली के इस घर पर किन्ही विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को जीवन भर कर्जा उठाते रहने पर मजबूर कर सकता है तथा कई बार यह कर्जा व्यक्ति की मृत्यु तक भी नहीं उतर पाता।
कुंडली के तीसरे घर को वैदिक ज्योतिष में बंधु भाव कहा जाता है तथा जैसा कि इस घर के नाम से ही स्पष्ट है, कुंडली के इस घर से कुंडली धारक के अपने भाई-बंधुओं, दोस्तों, सहकर्मियों तथा पड़ोसियों के साथ संबधों का पता चलता है। किसी व्यक्ति के जीवन काल में उसके भाईयों तथा दोस्तों से होने वाले लाभ तथा हानि के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कुंडली के इस घर का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है। जिन व्यक्तियों की कुंडली में तीसरा घर बलवान होता है तथा किसी अच्छे ग्रह के प्रभाव में होता है, ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल में अपने भाईयों, दोस्तों तथा समर्थकों के सहयोग से सफलतायें प्राप्त करते हैं। जबकि दूसरी ओर जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में तीसरे घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होता है, ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल में अपने भाईयों तथा दोस्तों के कारण बार-बार हानि उठाते हैं तथा इनके दोस्त या भाई इनके साथ बहुत जरुरत के समय पर विश्वासघात भी कर सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों के दोस्त आम तौर पर इनकी पीठ के पीछे इनकी बुराई ही करते हैं।
शरीर के अंगों में यह घर कंधों तथा बाजुओं को दर्शाता है तथा विशेष रूप से दायें कंधे तथा दायें बाजू को। इसके अतिरिक्त यह घर मस्तिष्क से संबंधित कुछ हिस्सों तथा सांस लेने की प्रणाली को भी दर्शाता है तथा इस घर पर किसी बुरे ग्रह का प्रभाव कुंडली धारक को मस्तिष्क संबंधित रोगों अथवा श्व्सन संबंधित रोगों से पीड़ित कर सकता है। इसके अतिरिक्त तीसरे घर पर किसी बुरे ग्रह का प्रभाव कुंडली धारक को कंधे या बाजू की चोट या फिर लकवा जैसी बीमारी से भी पीड़ित कर सकता है।
कुंडली का तीसरा घर कुंडली धारक के पराकर्म को भी दर्शाता है तथा इसिलिए कुंडली के इस भाव को पराकर्म भाव भी कहा जाता है। किसी व्यक्ति की शारीरिक मेहनत करने की क्षमता, शारीरिक उर्जा के बल पर खेले जाने वाले खेलों में उसकी रुचि तथा प्रगति देखने के लिए भी कुंडली के इस घर का अध्ययन आवश्यक है। कुंडली के तीसरे घर से व्यक्ति की बातचीत करने की कुशलता, लिखने की कला तथा लोगों के साथ व्यवहार करने की कला का भी पता चलता है। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में तीसरा घर किसी विशेष अच्छे ग्रह के प्रभाव में होता है, ऐसे व्यक्ति आम तौर पर जन व्यवहार में बहुत कुशल होते हैं तथा ऐसे ही कामों में सफलता प्राप्त करते हैं जिनमें लोगों के साथ बातचीत करने के अवसर अधिक से अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी बातचीत की कुशलता के चलते आम तौर पर मुश्किल से मुश्किल काम भी बातचीत के माध्यम से सुलझा लेने में सक्षम होते है। दूसरी ओर कुंडली के तीसरे घर पर किन्हीं विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव होने की स्थिति में कुंडली धारक का जन व्यवहार तथा बातचीत का कौशल इतना अच्छा नहीं होता तथा ऐसे लोग जन संचार से संबंधित कार्यों में आम तौर पर अधिक सफल नहीं हो पाते।
कुंडली के चौथे घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में मातृ भाव तथा सुख स्थान भी कहा जाता है तथा जैसे कि इस घर के नाम से ही पता चलता है, यह घर कुंडली धारक के जीवन में माता की ओर से मिलने वाले योगदान तथा कुंडली धारक के द्वारा किए जाने वाले सुखों के भोग को दर्शाता है। चौथा घर कुंडली का एक महत्त्वपूर्ण घर है तथा किसी भी बुरे ग्रह का चौथे घर अथवा चन्द्रमा पर बुरा प्रभाव कुंडली में मातृ दोष बना देता है। किसी व्यक्ति के जीवन में उसकी माता की ओर से मिले योगदान तथा प्रभाव को देखने के लिए तथा माता के साथ संबंध और माता का सुख देखने के लिए कुंडली के इस घर का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है। कुंडली के इस घर से किसी व्यक्ति के बचपन में उसकी माता की ओर से मिले सहयोग तथा उसकी मूलभूत शिक्षा के बारे में भी पता चलता है।
कुंडली का चौथा घर व्यक्ति के ज़ीवन में मिलने वाले सुख, खुशियों, सुविधाओं, तथा उसके घर के अंदर के वातावरण अर्थात घर के अन्य सदस्यों के साथ उसके संबंधों को भी दर्शाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में वाहन-सुख, नौकरों-चाकरों का सुख, उसके अपने मकान बनने या खरीदने जैसे भावों को भी कुंडली के इस घर से देखा जाता है। कुंडली में चौथे घर के बलवान होने से तथा किसी अच्छे ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक को अपने जीवन काल में अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं तथा ऐश्वर्यों का भोग करने को मिलता है तथा उसे बढिया वाहनों का सुख तथा नए मकान प्राप्त होने का सुख़ भी मिलता है। दूसरी ओर कुंडली के चौथे घर के बलहीन अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में होने की स्थिति में कुंडली धारक के जीवन काल में उपर बताई गईं सुख-सुविधाओं का आम तौर पर अभाव ही रहता है।
कुंडली का चौथा घर शरीर के अंगों में छाती, फेफड़ों, हृदय तथा इसके आस-पास के अंगों को दर्शाता है तथा इस घर पर बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को छाती, फेफड़ों तथा हृदय से संबंधित रोगों से पीड़ित कर सकता है तथा इसके अतिरिक्त कुंडली धारक की मानसिक शांति पर बुरा प्रभाव डाल सकता है अथवा कुंडली धारक को मानसिक रोगों से पीड़ित भी कर सकता है क्योंकि कुंडली का चौथा घर कुंडली धारक की मानसिक शांति से सीधे तौर पर जुड़ा होता है।
किसी व्यक्ति की जमीन-जायदाद के बारे में बताने के लिए तथा जमीन-जायदादों से संबंधित व्यवसायों में उसे होने वाले लाभ या हानि के बारे में जानने के लिए भी कुंडली के इस घर को देखा जाता है। किसी व्यक्ति को अपने जीवन में मिलने वाली मानसिक शांति तथा घर के वातावरण के बारे में भी यह घर बताता है। कुंडली के इस घर पर किन्ही विशेष ग्रहों का बुरा प्रभाव होने की स्थिति में कुंडली धारक को अपने घर के वातावरण में घुटन अथवा असुविधा का अहसास होता है तथा ऐसे लोग आम तौर पर घर से बाहर रहकर ही अधिक शांति का अनुभव करते है। कुंडली का चौथा घर कुंडली धारक के अपने रिश्तेदारों के साथ संबंधों के बारे में भी बताता है तथा इस घर पर किन्हीं विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव होने से कुंडली धारक के अपने रिश्तेदारों के साथ संबंधों में भी तनाव आ सकता है।
कुंडली के पाँचवे घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में सुत भाव अथवा संतान भाव भी कहा जाता है तथा अपने नाम के अनुसार ही कुंडली का यह घर संतान प्राप्ति के बारे में बताता है। किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली से उसकी संतान पैदा करने की क्षमता मुख्य रुप से कुंडली के इसी घर से देखी जाती है, हालांकि कुंडली के कुछ और तथ्य भी इस विषय में अपना महत्त्व रखते है। यहां पर यह बात घ्यान देने योग्य है कि कुंडली का पाँचवा घर केवल संतान की उत्पत्ति के बारे में बताता है तथा संतान के पैदा हो जाने के बाद व्यक्ति के अपनी संतान से रिश्ते अथवा संतान से प्राप्त होने वाला सुख को कुंडली के केवल इसी घर को देखकर नहीं बताया जा सकता तथा उसके लिए कुंडली के कुछ अन्य तथ्यों पर भी विचार करना पड़ता है।
कुंडली का पाँचवा घर बलवान होने से तथा किसी शुभ ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक स्वस्थ संतान पैदा करने में पूर्ण रुप से सक्षम होता है तथा ऐसे व्यक्ति की संतान आम तौर पर स्वस्थ होने के साथ-साथ मानसिक, शारीरिक तथा बौद्भिक स्तर पर भी सामान्य से अधिक होती है तथा समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सक्षम होती है। दूसरी ओर कुंडली का पाँचवा घर बलहीन होने की स्थिति में अथवा इस घर के किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक को संतान की उत्पत्ति में समस्याएं आती हैं तथा ऐसे व्यक्तियों को आम तौर पर संतान प्राप्ति देर से होती है, या फिर कई बार होती ही नहीं।
कुंडली का पाँचवा घर व्यक्ति के मानसिक तथा बौद्धिक स्तर को दर्शाता है तथा उसकी कल्पना शक्ति, ज्ञान, उच्च शिक्षा, तथा ऐसे ज्ञान तथा उच्च शिक्षा से प्राप्त होने वाले व्यवसाय, धन तथा समृद्धि के बारे में भी बताता है। कुंडली के पाँचवे घर के बलवान होने से तथा किसी शुभ ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम होता है तथा आम तौर पर इस शिक्षा के आधार पर आगे जाकर उसे जीवन में व्यवसाय भी प्राप्त हो जाता है जिससे इस शिक्षा की प्राप्ति सार्थक हो जाती है जबकि कुंडली के पाँचवे घर के बलहीन होने अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक आम तौर पर उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता अथवा उसे इस शिक्षा को व्यवसाय में परिवर्तित करने का उचित अवसर नहीं मिल पाता।
कुंडली का पाँचवा घर कुडली धारक के प्रेम-संबंधों के बारे में, उसके पूर्व जन्मों के बारे में तथा उसकी आध्यात्मिक रुचियों तथा आध्यात्मिक प्रगति के बारे में भी बताता है। कुंडली के पाँचवे घर पर किन्हीं विशेष अच्छे या बुरे ग्रहों के प्रभाव का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर कुंडली धारक के पूर्व जन्मों में संचित किए गए अच्छे अथवा बुरे कर्मों के बारे में भी पता चल सकता है तथा कुंडली धारक की आध्यत्मिक यात्रा की उन्नति या अवनति का भी पता चल सकता है। कुंडली धारक के जीवन में आने वाले प्रेम-संबंधों के बारे जानने के लिए भी कुंडली के इस घर पर ध्यान देना आवश्यक है तथा पूर्व जन्मों से संबंधित प्रेम-संबंध भी कुंडली के इस घर से जाने जा सकते हैं।
शरीर के अंगों में कुंडली का यह घर जिगर, पित्ताशय, अग्न्याशय, तिल्ली, रीढ की हड्डी तथा अन्य कुछ अंगों को दर्शाता है। महिलाओं की कुंडली में कुंडली का यह घर प्रजनन अंगों को भी कुछ हद तक दर्शाता है जिससे उनकी प्रजनन करने की क्षमता का पता चलता है। कुंडली के पाँचवे घर पर किन्हीं विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को प्रजनन संबंधित समस्याएं तथा मधुमेह, अल्सर तथा पित्ताशय में पत्थरी जैसी बिमारियों से पीड़ित कर सकता है।
कुंडली के छठे घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में अरि भाव अथवा शत्रु भाव कहा जाता है तथा कुंडली के इस घर के अध्ययन से यह पता चल सकता है कि कुंडली धारक अपने जीवन काल में किस प्रकार के शत्रुओं तथा प्रतिद्वंदियों का सामना करेगा तथा कुंडली धारक के शत्रु अथवा प्रतिद्वंदी किस हद तक उसे परेशान कर पाएंगे। कुंडली के छठे घर के बलवान होने से तथा किसी विशेष शुभ ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक अपने जीवन में अधिकतर समय अपने शत्रुओं तथा प्रतिद्वंदियों पर आसानी से विजय प्राप्त कर लेता है तथा उसके शत्रु अथवा प्रतिद्वंदी उसे कोई विशेष नुकसान पहुंचाने में आम तौर पर सक्षम नहीं होते जबकि कुंडली के छठे घर के बलहीन होने से अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक अपने जीवन में बार-बार शत्रुओं तथा प्रतिद्वंदियों के द्वारा नुकसान उठाता है तथा ऐसे व्यक्ति के शत्रु आम तौर पर बहुत ताकतवर होते हैं।
कुंडली का छठा घर कुंडली धारक के जीवन काल में आने वाले झगड़ों, विवादों, मुकद्दमों तथा इनसे होने वाली लाभ-हानि के बारे में भी बताता है। इसके अतिरिक्त कुंडली के इस घर से कुंडली धारक के जीवन में आने वाली बीमारियों तथा इन बीमारियों पर होने वाले खर्च का भी पता चलता है। कुंडली के छ्ठे घर से कुंडली धारक की मज़बूत या कमज़ोर वित्तिय स्थिति का भी पता चलता है। कुंडली में छठे घर के बलहीन होने से अथवा किसी विशेष बुरे ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक को अपने जीवन काल में कई बार वित्तिय संकटों का सामना करना पड़ सकता है तथा उसे अपने जीवन काल में कई बार कर्ज लेना पड़ सकता है जिसे आम तौर पर वह समय पर चुकता करने में सक्षम नहीं हो पाता तथा इस कारण उसे बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
कुंडली का छठा घर शरीर के अंगों में पेट के निचले हिस्से को, आँतों को तथा उनकी कार्यप्रणाली को, गुर्दों तथा आस-पास के कुछ और अंगों को दर्शाता है। कुंडली के इस घर पर किन्ही विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को कबज़, दस्त, कमज़ोर पाचन-शक्ति के कारण होने वाली बिमारियों, रक्त-यूरिया, पेट में गैस-जलन जैसी समस्याओं, गुर्दों की बिमारीयों तथा ऐसी ही कुछ अन्य बिमारियों से पीड़ित कर सकता है।
कुंडली के सातवें घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में युवती भाव कहा जाता है तथा कुंडली के इस घर से मुख्य तौर पर कुंडली धारक के विवाह और वैवाहिक जीवन के बारे में पता चलता है। कुंडली के इस घर से कुंडली धारक के वैवाहिक जीवन से जुड़े सबसे महत्त्वपूर्ण विषयों के बारे में पता चलता है, जैसे कि विवाह होने के लिए उचित समय, पति या पत्नी के साथ वैवाहिक जीवन का निर्वाह, वैवाहिक जीवन में पति या पत्नी से मिलने वाले सुख या दुख, लडाई-झगड़े, अलगाव, तलाक तथा पति या पत्नी को गंभीर शारीरिक कष्ट अथवा पति या पत्नी की मृत्यु के योग। इस प्रकार कुंडली धारक के विवाह तथा वैवाहिक जीवन से जुड़े अधिकतर प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए कुंडली के इस घर का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना अति आवश्यक है। कुंडली में सातवें घर के बलवान होने से तथा एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों के प्रभाव में होने से कुंडली धारक का वैवाहिक जीवन आम तौर पर अच्छा या बहुत अच्छा होता है तथा उसे अपने पति या पत्नी की ओर से अपने जीवन में बहुत सहयोग, समर्थन तथा खुशी प्राप्त होती है जबकि कुंडली में सातवें घर के बलहीन होने से अथवा एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों के प्रभाव में होने से कुंडली धारक के वैवाहिक जीवन में तरह-तरह की परेशानियां आ सकती हैं जिनमें पति या पत्नी के साथ बार-बार झगड़े से लेकर तलाक या फिर पति या पत्नी की मृत्यु भी हो सकती है।
विवाह के अतिरिक्त बहुत लंबी अवधि तक चलने वाले प्रेम संबंधों के बारे में तथा व्यवसाय में किसी के साथ सांझेदारी के बारे में भी कुंडली के इस घर से पता चलता है। कुंडली के सातवें घर से कुंडली धारक के विदेश में स्थायी रुप से स्थापित होने के बारे में भी पता चलता है, विशेष तौर पर जब यह विवाह के आधार पर विदेश में स्थापित होने से जुड़ा हुआ मामला हो।
कुंडली का सातवां घर शरीर के अंगों में मुख्य तौर पर जननांगों को दर्शाता है तथा किसी कुंडली में इस घर पर किन्हीं विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को जननांगों से संबंधित रोगों से पीड़ित कर सकता है जिनमें गुप्त रोग भी शामिल हो सकते हैं। इस लिए कुंडली के इस घर का अध्ययन बहुत ध्यानपूर्वक करना चाहिए।
कुंडली के आठवें घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में रंध्र अथवा मृत्यु भाव कहा जाता है तथा अपने नाम के अनुसार ही कुंडली का यह घर मुख्य तौर पर कुंडली धारक की आयु के बारे में बताता है। क्योंकि आयु किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक अति महत्त्वपूर्ण विषय होती है, इसलिए कुंडली का यह घर अपने आप में बहुत महत्त्वपूर्ण होता है तथा किसी भी कुंडली का अध्ययन करते समय उस कुंडली के आठवें घर को ध्यानपूर्वक देखना अति आवश्यक होता है। किसी कुंडली में आठवें घर तथा लग्न भाव अर्थात पहले घर के बलवान होने पर या इन दोनों घरों के एक या एक से अधिक अच्छे ग्रहों के प्रभाव में होने पर कुंडली धारक की आयु सामान्य या फिर सामान्य से भी अधिक होती है जबकि कुंडली में आठवें घर के बलहीन होने से अथवा इस घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने से कुंडली धारक की आयु पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
कुंडली के आठवें घर से कुंडली धारक के वैवाहिक जीवन के कुछ क्षेत्रों के बारे में भी पता चलता है जिनमे मुख्य रुप से कुंडली धारक का अपने पति या पत्नी के साथ शारीरिक तालमेल तथा संभोग़ से प्राप्त होने वाला सुख शामिल होता है। आठवें घर से कुंडली धारक की शारीरिक इच्छाओं की सीमाओं के बारे में भी पता चलता है। किसी कुंडली में आठवें घर पर किन्हीं विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को आवश्यकता से अधिक कामुकता प्रदान कर सकता है जिसे शांत करने के लिए कुंडली धारक परस्त्रीगामी बन सकता है तथा अपनी कामुकता को शांत करने के लिए समय-समय पर देह-व्यापार में संलिप्त स्त्रियों के पास भी जा सकता है जिससे कुंडली धारक का बहुत सा धन ऐसे कामों में खर्च हो सकता है तथा उसे कोई गुप्त रोग भी हो सकता है।
कुंडली का आठवां घर वसीयत में मिलने वाली जायदाद के बारे में, अचानक प्राप्त हो जाने वाले धन के बारे में, किसी की मृत्यु के कारण प्राप्त होने वाले धन के बारे में तथा किसी भी प्रकार से आसानी से प्राप्त हो जाने वाले धन के बारे में भी बताता है। कुंडली के इस घर का संबंध परा शक्तियों से भी होता है तथा किन्हीं विशेष ग्रहों का इस घर पर प्रभाव कुंडली धारक को परा शक्तियों का ज्ञाता बना सकता है। कुंडली के आठवें घर का संबंध समाधि की अवस्था से भी होता है। कुंडली के इस घर का संबंध अचानक आने वालीं समस्याओं, रुकावटों तथा परेशानियों के साथ भी होता है।
कुंडली का आठवां घर शरीर के अंगों में मुख्य रुप से गुदा तथा मल त्यागने के अंगों को दर्शाता है तथा कुंडली के इस घर पर किन्हीं विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को बवासीर तथा गुदा से संबंधित अन्य बिमारियों से पीड़ित कर सकता है।
कुंडली के नौवें घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में धर्म भाव अथवा धर्म स्थान के नाम से जाना जाता है तथा कुंडली का यह घर मुख्य तौर पर कुंडली धारक के पूर्व जन्मों में संचित अच्छे या बुरे कर्मों के इसे जन्म में मिलने वाले फलों के बारे में बताता है। इसी कारण कुंडली के नौवें घर को भाग्य स्थान भी कहा जाता है क्योंकि कर्मफल के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य उसके पूर्व जन्मों में संचित किए गए पुण्य तथा पाप कर्मों से ही निश्चित होता है। इस प्रकार कुंडली का यह घर अपने आप में अति महत्त्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसका भाग्य बहुत महत्त्व रखता है।
कुंडली का नौवां घर कुंडली धारक के पित्रों के साथ भी संबंधित होता है तथा इस घर से कुंडली धारक को अपने पित्रों से प्राप्त हुए अच्छे या बुरे कर्मफलों के बारे में भी पता चलता है। कुंडली के नौवें घर के पित्रों के साथ संबंधित होने के कारण इस घर पर किसी भी बुरे ग्रह का प्रभाव कुंडली में पितृ दोष का निर्माण कर देता है जिसके कारण कुंडली धारक को अपने जीवन के कई क्षेत्रों में बार-बार विभिन्न प्रकार की समस्याओं, विपत्तियों तथा परेशानियों का सामना करना पड़ता है जबकि कुंडली के नौवें घर पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर कुंडली धारक को अपने पूर्वजों के अच्छे कर्मों का फल उनके आशीर्वाद स्वरुप प्राप्त होता है, जिसके कारण उसे अपने जीवन के कई क्षेत्रों में सफलताएं तथा खुशियां प्राप्त होतीं हैं।
कुंडली का नौवां घर कुंडली धारक की धार्मिक प्रवृत्तियों के बारे में भी बताता है तथा उसकी धार्मिक कार्यों को करने की रुचि एवम तीर्थ स्थानों की यात्राओं के बारे मे भी कुंडली के नौवें घर से पता चलता है। नौवें घर पर किन्हीं विशेष शुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को बहुत धार्मिक बना देता है तथा इस घर पर शुभ गुरू, चन्द्र अथवा सूर्य का प्रभाव विशेष रूप से बहुत अच्छा माना जाता है जिसके फलस्वरूप कुंडली धारक के द्वारा अपने जीवन काल में बहुत से शुभ कार्य किए जाते हैं, जिनके शुभ फल कुंडली धारक की आने वाली पीढ़ियों को भी प्राप्त होते हैं। कुंडली का यह घर कुंडली धारक की आध्यात्मिक प्रगति के साथ भी सीधे रूप से जुड़ा होता है तथा कुंडली के इस घर से कुंडली धारक की आध्यत्मिक उन्नति का पता चल सकता है। कुंडली का नौवां घर विदेशों में भ्रमण तथा स्थायी रुप से स्थापित होने के बारे में भी बताता है।
कुंडली के दसवें घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में कर्म स्थान अथवा कर्म भाव कहा जाता है तथा कुंडली का यह घर मुख्य रूप से कुंडली धारक के व्यवसाय के साथ जुड़े उतार-चढ़ाव तथा सफलता-असफलता को दर्शाता है। कोई व्यक्ति अपने व्यवसायिक क्षेत्र में कितनी सफलता या असफलता प्राप्त कर सकता है, यह सफलता या असफलता उसके जीवन के किन समयों में सबसे अधिक हो सकती है तथा यह सफलता या असफलता किस सीमा तक हो सकती है, इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए कुंडली के दसवें घर का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है। कुंडली में दसवें घर के बलवान होने से तथा इस घर पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव होने से कुंडली धारक को अपने व्यवसायिक जीवन में बड़ी सफलताएं मिलतीं हैं तथा उसका व्यवसायिक जीवन आम तौर पर बहुत सफल रहता है जबकि कुंडली के दसवें घर के बलहीन होने से तथा इस घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने से कुंडली धारक को आम तौर पर अपने व्यवसायिक जीवन में अधिक सफलता नहीं मिल पाती तथा उसका अधिकतर जीवन व्यवसायिक संघर्ष में ही बीत जाता है।
कुंडली का दसवां घर कुंडली धारक को अपने जीवन में प्राप्त होने वाले यश या अपयश के बारे में भी बताता है तथा विशेष रूप से अपने व्यवसाय के कारण मिलने वाले यश या अपयश के बारे में। कुंडली धारक को मिलने वाले इस यश या अपयश की सीमा तथा समय निश्चित करने के लिए उसकी जन्म कुंडली में कुंडली के दसवें घर पर अच्छे या बुरे ग्रहों के प्रभाव को भली-भांति समझना अति आवश्यक है। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में दसवें घर पर शुभ तथा बलवान सूर्य का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को किसी उच्च सरकारी पद पर बिठा सकता है जबकि किसी कुंडली में दसवें घर पर अशुभ तथा बलवान शनि अथवा राहु का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को गैर-कानूनी व्यसायों में संलिप्त करवा सकता है जिसके कारण कुंडली धारक की बहुत बदनामी हो सकती है।
कुंडली का दसवां घर कुंडली धारक की महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में भी बताता है तथा कुंडली के अन्य तथ्यों पर विचार करने के बाद इन महत्त्वाकांक्षाओं के पूरे होने या न होने का पता भी चल सकता है। कुंडली धारक के अपनी संतान के साथ संबंध तथा संतान से मिलने वाला सुख अथवा दुख देखने के लिए भी कुंडली के इस घर पर विचार करना आवश्यक है।
कुंडली के ग्यारहवें घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में लाभ स्थान अथवा लाभ भाव कहा जाता है तथा कुंडली का यह घर मुख्य तौर पर कुंडली धारक के जीवन में होने वाले वित्तिय तथा अन्य लाभों के बारे में बताता है। ग्यारहवें घर के द्वारा बताए जाने वाले लाभ कुंडली धारक द्वारा उसकी अपनी मेहनत से कमाए पैसे के बारे में ही बताएं, यह आवश्यक नहीं। कुंडली के इस घर द्वारा बताए जाने वाले लाभ बिना मेहनत किए मिलने वाले लाभ जैसे कि लाटरी में इनाम जीत जाना, सट्टेबाज़ी अथवा शेयर बाजार में एकदम से पैसा बना लेना तथा अन्य प्रकार के लाभ जो बिना अधिक प्रयास किए ही प्राप्त हो जाते हैं, भी हो सकते हैं। कुंडली के ग्यारहवें घर पर शुभ राहु का प्रभाव कुंडली धारक को लाटरी अथवा शेयर बाजार जैसे क्षेत्रों में भारी मुनाफ़ा दे सकता है जबकि इसी घर पर बलवान तथा शुभ बुध का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को व्यवसाय के किसी नए तरीके के माध्यम से भारी लाभ दे सकता है। वहीं दूसरी ओर कुंडली के इस घर के बलह