मानसिक एवं शारीरिक व्याधियों की शांति

📖 अमृत सिद्धि योग क्या है? हिंदू ज्योतिष में अमृत सिद्धि योग को अत्यंत शुभ और सौभाग्य प्रदान करने वाला योग माना जाता है। इस योग में किए गए शुभ कार्य निश्चित रूप से सफलता और समृद्धि प्रदान करते हैं। ‘अमृत’ का अर्थ होता है अमरता या अमूल्य, और ‘सिद्धि’ का अर्थ है सफलता। अर्थात यह योग जीवन में शुभता, सफलता और लाभ देने वाला होता है। 🌟 अमृत सिद्धि योग कैसे बनता है? जब चंद्रमा किसी विशेष नक्षत्र में आता है और विशिष्ट वार (दिन) के साथ संयोग करता है, तो अमृत सिद्धि योग बनता है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार यह योग नक्षत्रों और वारों के विशेष मेल से निर्मित होता है। ✨ अमृत सिद्धि योग का महत्व: ✔ विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, व्यवसाय आरंभ जैसे कार्यों में सफलता ✔ नौकरी और करियर में उन्नति ✔ संतान प्राप्ति या परिवार से जुड़े कार्यों में लाभ ✔ यात्रा की शुरुआत में सफलता ✔ संपत्ति खरीदने-बेचने में लाभ ✔ रुके हुए कार्य पूर्ण करने का श्रेष्ठ समय 🪔 अमृत सिद्धि योग में क्या करें? 1️⃣ गृह प्रवेश, गृह निर्माण का शुभारंभ 2️⃣ नया व्यवसाय शुरू करना 3️⃣ वाहन, प्रॉपर्टी, ज्वेलरी आदि की खरीदारी 4️⃣ विवाह, सगाई या रिश्तों की बातचीत 5️⃣ किसी भी बड़े फैसले की शुरुआत 🗝️ अमृत सिद्धि योग के विशेष उपाय: 🔸 इस योग में श्री गणेश या श्री विष्णु का पूजन करें। 🔸 “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। 🔸 जरूरतमंदों को भोजन या वस्त्र का दान करें। 🔸 दिन की शुरुआत में मीठा खाकर बाहर जाएं। ⚠️ क्या न करें: ❌ विवाद, झूठ या क्रोध से बचें। ❌ इस दिन अपवित्रता से दूर रहें। ❌ नकारात्मक कार्य या बुरे विचार त्यागें। 📌 निष्कर्ष: अमृत सिद्धि योग वह शुभ अवसर है जब आपके द्वारा किए गए कार्य स्थायी लाभ और सिद्धि प्रदान करते हैं। यदि आप जीवन में सफलता, समृद्धि और खुशहाली चाहते हैं तो इस योग का लाभ उठाएं। 👉 व्यक्तिगत शुभ समय और विशेष उपाय जानने के लिए विशेषज्ञ ज्योतिष से परामर्श अवश्य लें।

मानसिक एवं शारीरिक व्याधियों की शांति

🧘 मानसिक एवं शारीरिक व्याधियों की शांति – जीवन में संतुलन और आरोग्यता पाने का मार्ग

आज के तेज़ रफ्तार जीवन में मानसिक तनाव (Mental Stress) और शारीरिक बीमारियाँ (Physical Illnesses) आम हो गई हैं। तनाव, चिंता, नींद की कमी, अवसाद, उच्च रक्तचाप, पाचन संबंधी समस्याएँ और थकान जैसे लक्षण जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।

लेकिन प्राचीन भारतीय शास्त्रों, आयुर्वेद, योग, और ध्यान के माध्यम से इन व्याधियों की शांति संभव है। सही दिनचर्या, साधना और कुछ आध्यात्मिक उपायों से हम पुनः मानसिक और शारीरिक संतुलन प्राप्त कर सकते हैं।


🧠 मानसिक व्याधियों के सामान्य कारण:

  • निरंतर चिंता और तनाव

  • असफलता का भय

  • नकारात्मक सोच या आत्मविश्वास की कमी

  • नींद की कमी या अनियमित जीवनशैली

  • अतीत की घटनाओं का बोझ

💪 शारीरिक व्याधियों के सामान्य कारण:

  • गलत खान-पान व दिनचर्या

  • शारीरिक व्यायाम की कमी

  • प्रदूषित वातावरण

  • अनावश्यक दवाइयों का सेवन

  • मानसिक तनाव का शारीरिक असर


🌿 मानसिक एवं शारीरिक व्याधियों की शांति हेतु उपाय:

1. योग और प्राणायाम

  • अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और कपालभाति से मन शांत होता है और शरीर ऊर्जावान बनता है।

  • सूर्य नमस्कार से शरीर की सभी प्रमुख मांसपेशियाँ सक्रिय रहती हैं।

2. ध्यान और मंत्र साधना

  • प्रतिदिन 15-20 मिनट “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ शांति: शांति: शांति:” का जाप करें।

  • इससे मन की चंचलता दूर होती है और मानसिक स्पष्टता आती है।

3. आयुर्वेदिक उपाय

  • अश्वगंधा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी जैसे औषधियाँ तनाव और अनिद्रा में सहायक होती हैं।

  • शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने हेतु त्रिफला, हल्दी और आंवला का सेवन करें।

4. वास्तु और ज्योतिषीय उपाय

  • सोने का स्थान शांत और उत्तर-पूर्व दिशा में हो।

  • बिस्तर के पास काले तिल, कपूर या चंद्र यंत्र रखें।

  • चंद्र ग्रह या राहु दोष की स्थिति हो तो रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।


🙏 आध्यात्मिक मार्ग से शांति की ओर

जब हम बाहरी समाधान से आगे बढ़कर अंतरात्मा की शांति को खोजते हैं, तो सभी व्याधियाँ स्वतः कम होने लगती हैं।
शांत मन में ही स्वस्थ शरीर का वास होता है।

तनाव के लिए, शारीरिक थकान से राहत, ओम शांति मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र

मानसिक एवं शारीरिक व्याधियों की शांति के लिए शरद पूर्णिमा की रात्रि को बादाम-मेवा युक्त खीर को रात में चाँद की रौशनी में रख कर दूसरे दिन भगवान् को भोग लगा कर तथा ब्राह्मणों को खिलाने के बाद स्वयं खाने से अनेक रोगों में शांति मिलती है।श्रावण एवं माघ मास में सोमवार के व्रत करना, प्रतिदिन शिवलिंग पर कच्ची लस्सी एवं बेलपत्र पंचाक्षरी मन्त्र बोलकर चढ़ाना, श्री शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र, शिव चालीस आदि का पाठ करना एवं घी का दीपक जलाना कल्याणकारक होता है।

चंद्र की महादशा एव अंतर्दशा में यदि अनिष्टकारक योग हो तो मृत्यु तुल्य कष्ट का भय होता है।इस दोष की निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय, शिवसहस्त्रनाम का जाप पाठ एवं चंद्र का दान करना चाहिए।
चंद्र में शनि की अंतर्दशा में मृत्युंजय जप एवं शनि का दान करना चाहिए।

चंद्र में शुक्र अथवा सूर्य की अंतर दशा में क्रमशः रूद्र-जप तथा शिव पूजन व् श्वेत वस्त्र, क्षीर आदि का दान करना चाहिए।

जन्म कुंडली में चंद्र यदि मातृ दोष कारक है तो हर अमावस विशेषकर सोमवती अमावस को पहले शिव परिवार का पूजन कच्ची लस्सी, बेल पत्र, अक्षत,धुप, दीप आदि मन्त्र सहित करने के बाद पीपल पर भी कच्ची लस्सी में सफ़ेद तिल डालकर चढ़ाना एवं घी का दीपक जलाना शुभकारक होता है।तदोपरांत ब्राह्मण को फल – दूध आदि का दान करें।

 शुक्ल पक्ष के सोमवार अथवा पूर्णमाशी से शुरू करके प्रत्येक सोमवार और पूर्णमाशी को मन्त्र जप करते हुए पंचगव्य, स्फटिक, मोती, सीप, शंख, बिल्व, कमल, सफ़ेद चन्दन, गौ दूध, गोबर, गौ मूत्र, सफ़ेद तिल, चावल, गंगाजल, एवं सफ़ेद पुष्प जल में डाल कर औषधीय स्नान करने से चंद्र जनित अनेक कष्टो से शांति मिलती है।

 

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