चंद्रदेव को अर्घ्य चंद्र मंत्र चंद्र गायत्री मंत्र सोमवार व्रत कथा चंद्र ग्रह शांति पूजा चन्द्र स्तोत्र

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चंद्रदेव को अर्घ्य चंद्र मंत्र चंद्र गायत्री मंत्र सोमवार व्रत कथा चंद्र ग्रह शांति पूजा चन्द्र स्तोत्र

चंद्रदेव को अर्घ्य (जल) अर्पित करने का विशेष महत्व होता है, विशेषकर सोमवार या पूर्णिमा के दिन। जब चंद्रमा उदित हो जाए, तो तांबे या चांदी के पात्र में कच्चा दूध मिलाकर जल चढ़ाया जाता है। अर्घ्य देते समय एक विशेष मंत्र बोला जाता है जिससे चंद्रदेव प्रसन्न होते हैं और मन को शांति, मानसिक मजबूती और सौभाग्य प्रदान करते हैं।पौराणिक कथानुसार चंद्र का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ सम्पन्न हुआ। चंद्र एवं रोहिणी बहुत रूपवती थीं अत: चंद्र का रोहिणी पर अधिक स्नेह देख शेष कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से अपना दुख प्रकट किया। दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के थे और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया,‘‘तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे।

इसके परिणामस्वरूप चंद्र क्षय रोग से ग्रस्त होने लगे और उनकी कलाएं क्षीण होने लगीं। नारद जी ने उन्हें मृत्युंजय भगवान आशुतोष की आराधना करने को कहा तो उन्होंने भगवान आशुतोष की आराधना की।

चंद्र अंतिम सांसें गिन रहे थे कि भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में चंद्र को पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया अर्थात चंद्र मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए। पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे तथा पूर्णमाशी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हुए।

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सौम्य चंद्रमा मन का स्वामी है। मन दूषित होने पर मनुष्य के संस्कार अपवित्र हो जाते हैं। वह न चाहते हुए भी पाप कर्म में लिप्त हो जाता है। मानसिक तनाव से मुक्ति, मन की एकाग्रता के लिए चंद्रणा का अनुकूल होना आवश्यक है।

Mantras for planet Moon: जिन लोगों की जन्म-पत्रिका में चंद्र चतुर्थ, अष्टम एवं द्वादश भाव में बैठा हो अथवा नीच ग्रहों से प्रभावित हो या चंद्र पाप से आक्रांत हो, उन्हें ‘चंद्र मंत्र’ का जाप करना चाहिए। इसके अतिरिक्त इस स्थिति में जन्म-पत्रिका में बैठे चंद्रमा की महादशा, अंतर्दशा इत्यादि की मुक्ति के समय भी चंद्र मंत्र का जप करने से लाभ होता है।

🌙 चंद्र अर्घ्य मंत्र:

“ॐ सोम सोमाय नमः”

या

“ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः”

विधि:
1️⃣ चंद्रमा के दर्शन करें।
2️⃣ तांबे या चांदी के पात्र में शुद्ध जल, सफेद फूल, सफेद मिठाई, चावल या कच्चा दूध मिलाएं।
3️⃣ दोनों हाथों से ऊँचाई से धीरे-धीरे अर्घ्य चढ़ाएं।
4️⃣ ऊँ सोम सोमाय नमः मंत्र का उच्चारण करें या अपनी श्रद्धानुसार चंद्र गायत्री मंत्र का जाप करें।

🌕 चंद्र गायत्री मंत्र:

“ॐ श्रीमद चंद्राय विद्महे कलाधराय धीमहि तन्नो सोम प्रचोदयात्।”

फल:
➡ मानसिक शांति
➡ मनोकामना पूर्ति
➡ वैवाहिक सुख
➡ आर्थिक समृद्धि
➡ सौंदर्य व आकर्षण में वृद्धि

नोट: विशेषकर मानसिक तनाव, वैवाहिक समस्याएं या चंद्र दोष वाले जातकों के लिए यह उपाय अत्यंत प्रभावी माना गया है।

 पूर्णिमा पर चंद्र पूरी कलाओं के साथ दिखाई देता है। ये रात पूजा-पाठ के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। चंद्र के सामने किए गए पूजन से शुभ फल जल्दी मिल सकते हैं।

Chant This Mantra To Make Moon Stronger

चन्द्रमा का नाम मंत्र –  ॐ सों सोमाय नम:।

चंद्रमा गायत्री मंत्र – ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।

चंद्रमा का पौराणिक मंत्र- दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम। नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।

चन्द्रमा के तांत्रोक्त मंत्र-
ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।
ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:।
ॐ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम: ।

चन्द्रमा का वैदिक मंत्र – ॐ इमं देवा असपत्नं ग्वं सुवध्यं।
महते क्षत्राय महते ज्यैश्ठाय महते जानराज्यायेन्दस्येन्द्रियाय इमममुध्य पुत्रममुध्यै
पुत्रमस्यै विश वोsमी राज: सोमोsस्माकं ब्राह्माणाना ग्वं राजा।

 पूर्णिमा पर कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं…

1. पूर्णिमा की रात चंद्र उदय के बाद चांदी के लोटे से चंद्र को दूध और जल का अर्घ्य अर्पित करें। ऊँ सों सोमाय नम: मंत्र का जाप 108 बार करें।

2. पूर्णिमा पर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। स्नान के बाद पीपल की पूजा करें। पीपल को जल चढ़ाएं। मिठाई का भोग लगाएं और सात परिक्रमा करें।

3. पूर्णिमा पर चंद्रोदय के बाद चंद्रदेव को कच्चे दूध में मिश्री और चावल मिलाकर अर्घ्य अर्पित करें।

4. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा में 11 पीली कौड़ियां, गोमती चक्र रखें। पूजा के बाद ये चीजें तिजोरी में रखें।

5. महालक्ष्मी और विष्णुजी की पूजा करें और पूजा में दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें। दूध में केसर मिलाएं और इसके बाद इस दूध को शंख में डालकर अभिषेक करें।

6. महालक्ष्मी के मंदिर जाएं और देवी मां को हल्दी की गांठ, इत्र, गुलाब के फूल चढ़ाएं। माता लक्ष्मी के सामने केसर का तिलक खुद के मस्तक पर लगाएं।

7. अपने घर के मंदिर में श्रीयंत्र, कुबेर यंत्र, एकाक्षी नारियल, दक्षिणवर्ती शंख की पूजा करें।

8. घर में सुख-शांति बनाए रखने के लिए सत्यनारायण भगवान की कथा करें।

9. हनुमानजी के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें।

10. शिवलिंग के पास दीपक जलाएं और श्रीराम नाम का जाप 108 बार करें।

सोमवार व्रत कथा

एक बहुत धनवान साहूकार था, जिसके घर धन आदि किसी प्रकार की कमी नहीं थी। परंतु उसको एक दुःख था। उसके कोई पुत्र नहीं था। वह इसी चिंता में दिन-रात रहता था। वह पुत्र की कामना के लिए प्रति सोमवार को चंद्रदेव का सोमेश्वर व्रत तथा चंद्र देव और शिवजी का पूजन किया करता था तथा प्रतिदिन मंदिर में जाकर शिवजी पर दीपक जलाया करता था। उसके भक्ति भाव को देखकर एक दिन पार्वती जी ने शिवजी से कहा-हे महाराज यह साहूकार आपका अत्यंत भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है, इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए।
शिवजी ने कहा -हे पार्वती ! यह संसार कर्म क्षेत्र है। जैसे किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है, उसी तरह इस संसार में जो जैसा करता है वैसा ही फल भोगता है। पार्वती जी ने अत्यंत आग्रह से कहा कि महाराज, जब यह आपका ऐसा भक्त है और यदि इसको किसी प्रकार का कोई दुःख है तो उसको अवश्य दूर करना चाहिए, क्योंकि आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु हैं, उनके दुःखों को दूर करते हैं। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य क्यों आपकी सेवा-पूजा करेंगे।
पार्वती जी का यह आग्रह देख शिवजी महाराज कहने लगे-हे पार्वती ! इसके कोई पुत्र नहीं है, इसी चिंता से यह अति दुःखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र देता हूं, परंतु वह केवल बारह वर्ष तक जीवित रहेगा, इसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। यह सब बातें वह साहूकार सुन रहा था। इससे उसको न कुछ प्रसन्नता हुई और न ही कुछ कष्ट हुआ। वह पहले जैसा ही शिवजी का व्रत और पूजन करता रहा। कुछ काल व्यतीत होने पर साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने उसके गर्भ से अति सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। साहूकार के घर में बहुत खुशियां मनाई गई, परंतु साहूकार ने उसकी केवल बारह वर्ष तक की आयु जान कोई अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और न ही किसी को यह भेद बतलाया।
जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हो गया तो उसकी माता ने उसके पिता से लड़के के विवाह आदि के लिए कहा। परंतु साहूकार कहने लगा, मैं अभी इसका विवाह नहीं करूंगा और काशीजी पढ़ने के लिए भेजूंगा। फिर साहूकार ने अपने साले अर्थात् उस बालक के मामा को बुला उसको बहुत-सा धन देकर कहा-तुम इस बालक को काशी जी पढ़ने के लिए ले जाओ। रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ, यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाना। वह दोनों मामा-भांजे सब जगह सब प्रकार यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा रहे थे।
रास्ते में उनको एक शहर पड़ा। उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था और दूसरे राजा का लड़का जो विवाह करने के लिए बरात लेकर आया वह एक आंख से काना था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं वर को देखकर कन्या के माता-पिता विवाह से मना न कर दें। इस कारण जब उसने सेठ के अति सुंदर लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न इस लड़के से वर के कपड़े पहना तथा घोड़ी पर चढ़ा ले जाए। यह कार्य बड़ी सुंदरता से हो गया। फेरों का समय आया तो वर के पिता ने सोचा, यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा दिया जाए तो क्या बुराई है? ऐसा विचार कर राजा ने लड़के और उसके मामा से कहा यदि आप फेरों और तिलक आदि का काम भी करा दें, तो आपकी बड़ी कृपा होगी और हम इसके बदले में बहुत-सा धन देंगे। उन्होंने भी स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से हो गया।
परंतु जिस समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुन्दड़ी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परंतु जिस राजकुमार के साथ तुम को भेजेंगे वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी जी पढ़ने जा रहा हूं। उस राजकुमारी ने जब चुन्दड़ी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया कहा कि यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ, जिसके साथ विवाह हुआ है वह तो काशी जी पढ़ने गया है। राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापिस चली गई।
उधर वह सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गये। वहां जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ाना शुरू कर दिया। जब लड़के की आयु बारह साल की हो गई और उस दिन भी उन्होंने यज्ञ रचा रखा था। लड़के ने अपने मामा जी से कहा-मामा जी, आज तो मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा-अंदर जाकर सो जाओ। लड़का अंदर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गये। जब उसके मामा ने आकर देखा कि वह तो मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि मैं अभी रोना और विलाप करना शुरू कर दूंगा तो यज्ञ कार्य अधूरा रह जाएगा। उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना-पीटना आरंभ कर दिया। संयोगवश उसी समय शिव-पार्वती जी उधर से जा रहे थे। जब उन्होंने जोर-जोर से रोने-पीटने की आवाज सुनी तो पार्वती जी से कहने लगीं-महाराज! कोई दुखिया रो रहा है। इसके कष्ट दूर करो। तब शिवजी जी बोले इसकी आयु इतनी ही थी, सो भोग चुका। पार्वती जी ने कहा कि महाराज कृपा करके इस बालक को और आयु दो, नहीं तो उसके माता-पिता तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। पार्वती जी के इस प्रकार बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उस को वरदान दिया और शिव जी महाराज की कृपा से लड़का जीवित हो गया। शिव-पार्वती जी कैलाश चले गए।
तब लड़का और मामा उसी प्रकार यज्ञ करते हुए अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में उसी शहर में आए जहां विवाह हुआ था। वहां पर आकर उन्होंने यज्ञ आरंभ किया तो लड़के को ससुर ने पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर बड़ी खातिर की। राजा ने कुछ दिन उन्हें अपने यहां रखने के बाद बहुत से दास-दासियों के सहित आदर पूर्वक लड़की और जंवाई को विदा किया। जब वह अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा कि मैं पहले तुम्हारे घर जाकर सबको खबर कर आता हूं। उस समय लड़के के माता-पिता अपने घर की छत पर बैठे हुए थे उन्होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल घर पर आ जाएगा तब तो राजी-खुशी नीचे उतरकर आ जाएंगे, नहीं तो छत से गिर कर अपने प्राण खो देंगे। इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है। परंतु उनको विश्वास नहीं आया तब उसके मामा ने शपथ पूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन साथ में लेकर आया हुआ है तो सेठ ने आनंद के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे। इसी प्रकार जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को पढ़ता या सुनता है, उसके सब दुःख दूर होकर उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होते हैं।

भगवान सोमेश्वर से विनय

हे सोमदेव अविनाशी, प्रभु राखो लाज हमारी।
मैं दुखिया शरण तिहारी, हे चंद्रदेव बलधारी।।
यह जालिम जगत मुझे बहुत सताये।
कदम-कदम पर बहुत नाच नचाये।
क्या करूं कुछ समझ न आए, ऐसी है लाचारी।
हे सोमदेव अविनाशी, मैं दुखिया शरण तिहारी।।
मुश्किल है इस भीषण दुःखों में जीना।
फटा जा रहा है गमों से यह सीना।
बुद्धि सही चकराय, है सुध बुध सभी बिसारी।
हे सोमदेव अविनाशी, मैं दुखिया शरण तिहारी।।
काम क्रोध मद लोभ ने भरमाया।
दिनों के फेर ने मुझे बहुत सताया।
टूट चुका हूं मैं मेरे प्रभु, है जीवन बाजी हारी।
हे सोमदेव अविनाशी, मैं दुखिया शरण तिहारी।।
प्रभु सोमेश्वर अपना दरश दिखा दो।
कृपा करो प्रभु सारे कष्ट मिटा दो।
आया हूं प्रभु तेरी शरण में, राखो लाज हमारी।
हे सोमदेव अविनाशी, मैं दुखिया शरण तिहारी।।

 

भगवान शिव की आरती |

जय जय हे शिव परम पराक्रम, ओंकारेश्वर तुम शरणम्।
नमामि शंकर भवानि शंकर, दीनजन रक्षक त्वं शरणम्।। टेक।।
दशभुज मंडप पंचवदन शिव, त्रिनयन शोभित शिव सुखदा।
जटाजूट सिर मुकुट बिराजै, श्रवण कुण्डल अति रमणा।।
ललाट चमकत रजनी नायक, पन्नग भूषण गौरीशा।
त्रिशूल अंकुश गणपति शोभा, डमरू बाजत ध्वनि मधुरा।।
भस्म विलेपन सर्वांगे शिव, नन्दी वाहन अति रमणा।
वामांगे गिरिजा हैं विराजित, घटां नाद की धुनि मधुरा।।
गज चर्माम्बर बाघाम्बर हर, कपाल माला गंगेशा।
पंचबदन पर गणपति शोभा, पृष्ठे गिरिपति कोटीशा।
कपिला संग में निर्मल जल है, कोटि तीरथे भय हरणम्।
नर्मदा कावेरी केल से, गंगमध्य शोभित गिरशिखरा।
इन्द्रादिक सुरपति सेवत, रम्भादिक ध्वनि अति मधुरा।।
मंगल मूर्ति प्रणवाष्टक शिव, अद्भुत् शोभा त्रिय भवनं।
सनकादिक मुनि करत स्तोत्र, मनवांछित फल भय हरणम।।
प्रणवाष्टक पद ध्याय जनेश्वर, रचयति विमल पदवाष्टम्। तुमरि कृपा त्रिगुणात्मा शिवजी, पतित पावन भयहरणम्।।

ॐ श्र्वेताम्बर: श्र्वेतवपुः किरीट श्र्वेतद्दुतिर्दण्डधरो द्विबाहु: ।
चन्द्रोऽमृतात्मा वरद: शशाङक: श्रेयांसि महं प्रददातु देव: ॥1॥

दधिशङखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् ।
नमामि शशिनंसोमंशम्भोर्मुकुटभूषणम् ॥2॥

क्षीरसिन्धुसमुत्पन्नो रोहिणीसहित: प्रभु : ।
हरस्य मुकटावास बालचन्द्र नमोस्तु ते ॥3॥

सुधामया यत्किरणा: पोषयन्त्योषधीवनम् ।
सर्वान्नरसहेतुं तं नमामि सिन्धुनन्दनम् ॥4॥

राके शंतारके शं च रोहिणी प्रियसुन्दरम् ।
ध्यायतां सर्वदोषघ्नं नमामीन्दुं मुहुर्मुह: ॥5॥

meaning of chandra strotra

श्वेत वस्त्र धारी, गौरवर्ण, मुकुट पहने हुए, श्वेत रंग का दण्ड धारण किये हुए, दो भुजा वाले, अमृतमय देह्युक्त, वरदान देने वाले अपनी गोद में खरगोश को रखे हुए भगवान चन्द्रमा मेरे लिए कल्याणकारी हों।॥1॥
दीप, शंख तथा बर्फ की तरह स्वच्छ, क्षीर सागर से उत्पन्न, भगवान शिव के मुकुट में सुशोभित, सौम्य रूप वाले भगवान् चन्द्रमा को बारम्बार नमन करता हूं।॥2॥
क्षीर सागर से उत्पन्न, रोहिणी नक्षत्र साथ रहने वाले, भगवान शिव के मुकुट में सुशोभित बल चन्द्र को प्रणाम करता हूं।॥3॥
अमृतमय किरणों वाले, औषधियों को पुष्ट करने वाले समस्त प्राणियों को आनन्दित करने वाले, सागर पुत्र चन्द्रमा को नमन हो।॥4॥
नक्षत्रों के अधिपति, रोहिणी प्रिय, सुन्दरतम अपने भक्तों के विघ्नों को दूर करने वाले भगवान चन्द्रमा को बारम्बार नमन करता हूं।॥5॥

चंद्र मंत्र साधना की समाप्ति:

चन्द्र साधना ग्यारह दिन की है। साधना के बीच साधना नियम का पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन मंत्र जप करें, नित्य जाप करने से पहले संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह दिन तक चन्द्र ग्रह मन्त्र का जाप करने के बाद मंत्र का दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन करें, हवन के पश्चात् यंत्र को अपने सिर से उल्टा सात बार घुमाकर दक्षिण दिशा में किसी निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दें। इस तरह से यह साधना पूर्ण मानी जाती है, धीरे-धीरे चन्द्र अपना अनिष्ट प्रभाव देना कम कर देता है, चन्द्र से संबंधित दोष आपके जीवन से समाप्त हो जाते है।

 

 

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