श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् श्री राम स्तुति

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् श्री राम स्तुति

 

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं।
नवकंज-लोचन,कंज-मुख, कर-कंज पद कंजारुणं।।
कंदर्प अगणित अमित छवि, नवनील-नीरद सुन्दरं।
पटपीत मानहु तड़ित रुचिशुचि,नौमि जनक सुतावरं।।
भजु दीनबन्धु दिनेश दानवदैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशलचन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥
शिर मुकुट कुंडल तिलकचारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धरसंग्राम जित खरदूषणं ॥४॥
इति वदति तुलसीदास शंकरशेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरुकामादि खलदल गंजनं ॥५॥
मन जाहि राच्यो मिलहि सोवर सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शीलस्नेह जानत रावरो ॥६॥
एहि भांति गौरी असीस सुन सियसहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनिमुदित मन मन्दिर चली ॥७॥
॥सोरठा॥जानी गौरी अनुकूल सियहिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वामअङ्ग फरकन लगे।

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