शिव की साधना

शिव की साधना

तीन युग तथा कलयुग के ढाई हजार वर्ष तक केवल शिव की ही साधना होती थी,घंटा,घड़ियाल ,आरती,चालीसा इस तरह की पूजा पद्धति नहीं थी,सनातन धर्म के लोग तब ध्यान साधना ही करते थे इसीलिए उस समय मंदिर नहीं होते थे,जब मंदिरों का निर्माण हुआ तब उसमें केवल एक मूर्ति मात्र शिवलिंग की ही रखी जाती थी क्यों कि शिव ही मूल ब्रह्म है,भगवान केवल एक है वह है शिव,शिव स्वयं से उत्पन्न हैं इसीलिए इनको स्वयं भू कहा गया,शिव सनातन है,जिस दिन पहली मानव रचना हुई वहीं से सनातन धर्म शुरू हुआ इसीलिए सनातन धर्म को ईश्वरीय धर्म कहा गया है,सनातन धर्म किसी मानव के द्वारा नहीं बनाया गया,सृष्टि का निर्माण केवल शिव के द्वारा हुआ,बृहमा,विष्णु,महेश इनकी सब काल्पनिक कहानी है,सनातन धर्म का ब्राह्मणों ने उस दिन से नुकसान किया जब शिव से शंकर नाम का एक काल्पनिक पात्र जोड़ कर कथा पुराण लिखे,अवतार की कहानियों से लोगों को गुमराह किया,जिस भगवान के द्वारा सृष्टि की रचना की गई तो उसके अंदर इतनी क्षमता भी होती है कि वह अपना साक्षात्कार करा सके,युगों से हमारे संत ऋषि केवल एक मात्र ब्रह्म शिव का ही साक्षात्कार करते आए हैं कोई भी मानव रूप भगवान की श्रेणी में नहीं आ सकता है,मानव शरीर की कभी न कभी मृत्यु होनी है,भगवान जीवन मृत्यु से परे है,भगवान जाति बंधन से मुक्त होता है,जो हर समय,हर युग में एक सा रहे,समाधि में केवल एक ही भगवान का युगों से अभी तक साक्षात्कार होता आया है वह है मात्र शिव का,हृदय पर ध्यान लगा कर जो साधना की जाती है उसको राज योग क्रिया कहते हैं,जब हृदय चक्र जिस साधक का जागृत हो जाता है तो उसको अपने अंदर नारंगी प्रकाश में काले रंग के शिवलिंग का साक्षात्कार होता है.
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