मंगल दोष का निवारण

मंगल दोष का निवारण
May 30, 2019
मंगल स्तोत्र पाठ :-
मंगल दोष शान्ति में मंगल स्तोत्र का विशेष महत्व है। मंगल दोष से पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन एक पाठ करना चाहिए। और मंगलवार के दिन विशेष रूप से विषम संख्या में १-३-५-७-९-११ की संख्या में पाठ करने चाहिए। इससे मंगल दोष जल्दी शांत होता है। शुक्ल पक्ष के किसी भी मंगलवार को यह पाठ आरम्भ किया जा सकता है।
विष्णु प्रतिमा विवाह :-
जिन लड़कियों के कुंडली में मंगल दोष का प्रभाव होता है उनका विष्णु प्रतिमा से विवाह करवाना चाहिए। विष्णु विवाह के पश्चात मंगल दोष का अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त पीपल विवाह , कुम्भ विवाह , भी इसके उपाय है। परन्तु विष्णु विवाह को प्रमुखता प्राप्त है। इस उपाय में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना जरुरी है। इसमें विष्णु जी की प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमा ही होनी चाहिए। इस विवाह को गोपनीय रखना चाहिए। इसके लिए विवाह का मुहूर्त निकलवाना चाहिए। लड़का रोकने से पहले ही यह विवाह करवाना चाहिए। इसमें सारी क्रिया लड़की ही करती है। पिता का हाथ नही लगता है। इसमें कन्यादान नही होता। यह किसी निर्जन स्थान वाले शिव मन्दिर में करवाना उचित होता है।
मंगल रत्न मूंगा :-
मंगल का रत्न मूंगा होता है. और इसका उपरत्न लाल हकीक होता है। परन्तु इसमें एक विशेष बात ये है कि जो मांगलिक होता है उसे मूंगा नही पहनाया जाता है , अपितु जो उसका जीवन साथी मांगलिक नही है उसे यह रत्न पहनाया जाता है। जिससे वह अपने मांगलिक साथी के प्रभाव को सहन कर सके। वैसे तो शरीर के वजन के हिसाब से रत्न पहना जाता है। परन्तु लगभग ८ कैरेट का मूंगा सोना या ताँबे में बनवा कर किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार को सूर्य उदय से एक घण्टे तक कच्चे दूध और गंगाजल में धो कर धूप बत्ती लगा कर ॐ भौम भौमाय नमः मन्त्र की एक माला जप करके हनुमान जी का नाम लेकर लड़का दाएं हाथ की अनामिका अंगुली में और लड़की बाये हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करे।
मंगल व्रत :-
मंगल दोष की शांति के लिए मंगल वार का व्रत किया जाता है। यह शुक्ल पक्ष के मंगलवार से आरम्भ किया जाता है। इसकी सम्पूर्ण विधि किसी विद्वान् पण्डित से पूछ लेनी चाहिए। व्रत के दिन मर्यादा और संयम रखे। किसी पर भी क्रोध न करें। इस दिन भोजन न करके फलाहार ही करें। सोमवार, मंगलवार और बुधवार की सम्भोग न करे।
इसके अलावा और भी बहुत से उपाय प्रचलित है , जैसे – मंगल चण्डिका स्तोत्र , मंगल साधना , मंगल यन्त्र पूजन , अंगारक स्तोत्र , मंगल कवच , मंगल अष्टोत्तर शतनाम आदि। परन्तु ये उपरोक्त उपाय अधिक प्रचलित और फलदायी है।
कुंडली में चौथा भाव भूमि, भवन, वाहन, माता, सुख, का कारक होता है, इन सभी बातों का विचार चौथे भाव से किया जाता है। इसके साथ ही ख़ुशी, गृहस्थी, रिश्तेदार व जनता का प्रतिनिधित्व का भी विचार किया जाता है। मंगल इस भाव में बैठ कर अपनी पूर्ण दृष्टि से सातवें , दसवें, तथा ग्यारहवें भाव को देख रहा है। इस भाव में मंगल अशुभ माना जाता है तथा कुंडली में मांगलिक योग बनाता है। परन्तु बेनामी सम्पत्ति या अचल सम्पत्ति के लिए यह शुभ है।
कुछ विद्वान् इसे अधिक प्रभावी नही मानते। परंतु मेरे अनुसार तो जहर कितना भी हो जहर ही होता है। जहर की एक बूँद भी मृत्यु का कारण बन सकती है। इस भाव का मंगल वैवाहिक जीवन में तो कटुता लाता ही है, साथ ही मंगल की दृष्टि वाले भाव – सातवां भाव जीवनसाथी , दसवां भाव कार्य क्षेत्र , तथा ग्यारहवा भाव आय का है। इनमे भी अशुभता प्राप्त होती है।
मंगल यहाँ बैठकर परिवार के सुख में कमी करता है, विचारों में मतभेद होते है, जीवनसाथी से यौन सुख में कमी करता है, यौन रोग देता है, विवाह में देरी करवाता है कर्म की हानि करता है, आय को नुकसान पहुँचाता है। माता को कष्ट होता है, पिता का स्वभाव क्रोधी होता है , जीवनसाथी का स्वभाव भी क्रोधी हो जाता है। यदि सातवें भाव पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो जीवन नरक के समान बन जाता है। यदि सूर्य की दृष्टि हो तो तलाक तक की स्थिति आ जाती है।