नवग्रहों के वृक्ष


नवग्रहों के वृक्ष
May 30, 2019
प्रत्येक ग्रह का अपना कारक वृक्ष होता है.
इस वृक्ष का सेवन, धारण और संवर्धन ग्रहपीड़ा शांति और उसकी सबलता के लिए एक अति महत्वपूर्ण ज्योतिषीय उपाय है. ग्रह योगकारक लेकिन निर्बली हो या फिर नकारात्मक प्रभाव दे रहा हो तो इन वृक्षों की पूजा अर्चना, इनका औषधीय स्नान और धारण आदर्श है.
पूजा अर्चना के अंतर्गत वृक्षों का रोपण, संवर्धन और दर्शन आता है. औषधीय स्नान वृक्ष की जड़, छाल, फूल पत्ती आदि को जल में मिलाकर स्नान करना है. धारण में वृक्ष की लकड़ी अथवा जड़ को ताबीज आदि के द्वारा शरीर पर पहना जाता है.
नवग्रहों के वृक्ष इस प्रकार हैं –
सूर्य-आक (मदार)
शुक्र-गूलर
शनि-शमी (खेजड़ी)
राहू- दूब अथवा चंदन
मंगल-खैर (कत्था)
बृहस्पति-पीपल
बुध-अपामार्ग (आंधीझाड़ा)
चंद्रमा-पलाश
केतु- कुश अथवा अश्वगंधा
ज्योतिषीय उपचारों के लिए यज्ञ में वनस्पति का विषद् उपयोग बताया गया है। वेदों और पुराणों के अनुसार ग्रह का सबसे सषक्त माध्यम यज्ञ है। बाद के विद्वानों ने स्पष्ट किया है कि कौन सी वनस्पति के काष्ठ की आहुति देने पर क्या उपचार हो सकता है। यज्ञाग्नि प्रज्वलित रखने के लिए प्रयोग किए जाने वाले काष्ठ को समिधा अथवा इध्म कहते हैं। प्रत्येक लकड़ी को समिधा नहीं बनाया जा सकता। आह्निक सूत्रावली में ढाक, फल्गु, वट, पीपल, विकंकत, गूलर, चन्दन, सरल, देवदारू, शाल, खैर का विधान है। वायु पुराण में ढाक, काकप्रिय, बट, पिलखन, पीपल, विकंकत, गूलर, बेल, चन्दन, पीतदारू, शाल, खैर को यज्ञ के लिए उपयोगी माना गया है। सूर्य के लिए अर्क, चंद्र के लिए ढाक, मंगल के लिए खैर, बुध के लिए अपामार्ग, गुरू के लिए पारस पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी और राहू के लिए चन्दन (दूर्वा) व केतु के लिए असगंध (कुश) वनस्पतियों को उपचार का आधार बनाया जाता है
आयुर्वेद की औषधियों की भांति ज्योतिष में भी वृक्षों का इस्तेमाल ग्रहों के दुष्प्रभावों को दूर करने में किया जाता रहा है।
हर वृक्ष किसी न किसी ग्रह से संबंधित है। कुछ वृक्षों को विषेष रूप से चिन्हित किया गया है, जो ग्रह शांति के लिए सटीकता के साथ काम करते हैं। एक ओर यज्ञ के जरिए ग्रह शांति तो दूसरी ओर शरीर पर धारण कर ग्रहों की पीड़ा को कम करने के लिए वनस्पतियों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसके साथ ही वास्तु संबंधी दोषों को दूर करने में भी पौधों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
घर के आगे नवग्रहों के वृक्षों की स्थापना के लिए सिद्धांत बताए गए हैं। इसके लिए स्पष्ट किया गया है कि पूर्व में गूलर, पश्चिम में शमी, उत्तर में पीपल, दक्षिण में खैर और मध्य में आक का वृक्ष लगाना लाभदायी है। इसके अलावा उत्तर पूर्व में अपामार्ग, उत्तर पश्चिम में असगंध (कुश), दक्षिण पष्चिम में चंन्दन (दूब) और दक्षिण पूर्व में ढाक का वृक्ष लगाना चाहिए। इससे पूरे प्लाट के वास्तु दोष बहुत हद तक खत्म हो जाते हैं और घर में सुख शांति का वातावरण बना रहता है।
ग्रहों के अधीन पौधे :- पर्वतों पर उगने वाले पौधे, मिर्च, शलजम, काली मिर्च व गैहूं को सूर्य के अधिकार में बताया गया है। इसी तरह खोपरा, ठण्डे पदार्थ, रसीले फल, चावल और सब्जियां चंद्रमा से संबंधित हैं। नुकीले वृक्ष, अदरक, अनाज, जिंसें, तुअर दाल और मूंगफली को मंगल से देखा जाएगा। बुध के अधिकार में नम फसल, भिंडी, मूंग दाल और बैंगन आते हैं। वृहस्पति ग्रह से केला के वृक्ष, खड़ी फसल, जड़ें, बंगाली चना और गांठों वाले पादप जुड़े हैं। शुक्र के अधीन फलदार वृक्ष, फूलदार पौधे, पहाड़ी पृक्ष, मटर, बींस और लताओं के अलावा मेवे पैदा करने वाले पादप आते हैं। शनि से संबंधित वृक्षों में जहरीले और कांटेदार पौधे, खारी सब्जियां, शीषम और तम्बाकू शामिल हैं। राहू और केतू के अधिकार में शनि से संबंधित वृक्षों के अलावा लहसुन, काले चने, काबुली चने और मसाले पैदा करने वाले पौधे आते हैं।
हमारे ऋषि-मुनि, संत-महात्मा सही गह गए हैं कि पशु-पक्षियों को दाना-पानी खिलाने से मनुष्य के जीवन में आने वाली कई परेशानियों से छुटकारा बड़ी ही आसानी से मिल जाता है। एक ओर जहां हम प्रभु की भक्ति के कृपा पात्र बनते हैं वहीं हमें अच्छे स्वास्थ्य के साथ ही पुण्य-लाभ भी प्राप्त होता है।
अगर आपके मन में भी दिनभर बेचैनी-सी रहती है। आपके काम ठीक समय पर पूरे नहीं हो रहे हैं। पारिवारिक क्लेश नियमित रूप से चलता रहता है। स्वास्थ्य ठीक नहीं है आदि…. तो निश्चित ही आपको पक्षियों को दाना खिलाने से आनंद की प्राप्ति होगी और आपके जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
चींटी, चिड़ियों, गिलहरियां, कबूतर, तोता, कौआ और अन्य पक्षियों के झुंड और गाय, कुत्तों को नियमित दाना-पानी देने से आपको मानसिक शांति प्राप्त होगी। अत: पशु-पक्षियों को दाना-पानी देने से ग्रहों के अनिष्ट फल से छुटकारा मिलता है।
पीड़ा निवारण के लिए :-
सूर्य की पीड़ा होने परः- बेलपत्र की जड़ को लाल डोरे में बांधकर पहनने से आराम मिलता है। यदि हवन किया जाए तो समिधा के रूप में आक का इस्घ्तेमाल किया जाता है। सूर्य के कारण आ रही बाधा के निवारण के लिए मंत्र दिया गया है ‘ऊं ह््रां ह््रीं ह््रौं सः सूर्याय नमः’ इस मंत्र के सात हजार जाप करने होंगे।
चंद्र की पीड़ा होने परः- खिरनी की जड़ को सफेद डोरे में बांधकर पहनने से लाभ होता है। यदि चंद्रमा की शांति के लिए हवन किया जाता है कि इसमें पलाष की लकड़ी का समिधा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। चंद्र से बाधा होने पर ‘ऊं श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः’ का पाठ करने से लाभ होगा। इस मंत्र के ग्यारह हजार जाप बताए गए हैं।
मंगल की पीड़ा होने परः- अनन्तमूल की जड़ को लाल डोरे में बांधकर पहनने से लाभ होगा। मंगल शांति यज्ञ में खैर की लकड़ी को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है। मंगल शांति के लिए ‘ऊं क्रां क्रीं कौं सः भौमाय नमः’ के दस हजार जाप करने का प्रावधान बताया गया है।
बुध की पीड़ा होने परः- विधारा की जड़ को हरे डोरे में बांधकर पहनने से पीड़ा दूर होती है। बुध की शांति के लिए किए जाने वाले यज्ञ में अपामार्ग को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है। मंत्र जाप के रूप में ‘ऊं ब्रां ब्रीं बौं सः बुधाय नमः’ के नौ हजार पाठ करने का प्रावधान है।
बृहस्पति की पीड़ा होने परः- केले की जड़ को पीले धागे में बांधकर पहनने से लाभ होगा। गुरु ग्रह की शांति के लिए किए जाने वाले यज्ञ में पीपल को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है। बृहस्पति पीड़ित होने पर ‘ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः’ के उन्नीस हजार पाठ करने से लाभ होता है।
शुक्र पीड़ित होने परः- सरपोंखा की जड़ को चमकीले धागे में बांधकर धारण करने से लाभ होता है। गूलर की समिधा को शुक्र शांति के यज्ञ में इस्घ्तेमाल किया जाता है। शुक्र की बाधा के निवारण के लिए ‘’ऊं द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः’’ के सोलह हजार पाठ का प्रावधान बताया गया है।
शनि की पीड़ा होने परः- बिच्छु की जड़ को काले धागे में बांधकर पहनने से लाभ होता है। शनि शांति यज्ञ में शमी की समिधा का उपयोग किया जाता है। शनि की पीड़ा के निवारण के लिए ‘ऊं प्रां प्रीं प्रौं सः शनैष्चराय नमः’ के 23 हजार पाठ का प्रावधान बताया गया है।
राहु की पीड़ा होने परः- सफेद चंदन की लकड़ी को पहनने से लाभ होता है। धागा उसी रंग का लिया जाएगा, जिस राषि में राहू स्थित है। राहू की पीड़ा के निवारण के लिए किए जाने वाले यज्ञ में चन्दन का
इस्तेमाल समिधा के रूप में किया जाता है। राहु की शांति के लिए ‘ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’ के 18 हजार पाठ करने की सलाह दी जाती है।केतु की पीड़ा होने परः- असगंध की जड़ को धारण करने से लाभ होता है। केतु के लिए भी राषि स्वामी के अनुरूप ही धागा लिया जाएगा। केतु की पीड़ा निवारण के लिए होने वाले यज्ञ में असगंध का इस्तेमाल समिधा के रूप में किया जाता है।केतु की शांति के लिए ‘ऊं स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः’ के दस हजार पाठ करने का प्रावधान है।
अपराजिता एक लता जातीय बूटी है जो की वन उपवनो में विभिन्न वृक्षों के सहारे सदा हरी भरी रहती है | यह समस्त भारत में पाई जाती है, इसकी विशेष उपयोगिता बंगाल में दुर्गा देवी तथा माँ काली की पूजा में उपयोग किया जाता है | नवरात्री के विशिष्ट अवसर पर नौ वृक्षों की टहनियों की पूजा में एक अपराजिता भी होती है |अपराजिता पुष्प भेद के कारण दो प्रकार की होती है नीले पुष्प वाली तथा श्वेत पुष्प वाली | नीले पुष्प वाली को कृष्ण कांता और श्वेत पुष्प वाली को विष्णु कांता कहते हैं |
ज्योतिष के अनुसार नीले रंग के फूल किस्मत बदलने की क्षमता रखते हैं। इन्हें देवी- देवताओं को चढ़ाने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और धन- समृद्धि में वृद्धि होती है। अपराजिता का फूल शनिदेव, श्रीहरि विष्णु, श्रीकृष्ण और लक्ष्मीजी को नीले रंग के फूल बहुत प्रिय हैं।
1- विवाह हेतु :- जिन जातकों का विवाह नहीं हो रहा है अथवा शनि के दुष्प्रभाव के कारण विवाह में विलम्ब हो रहा है विवाह में बार-बार बाधाएं और रूकावट आने पर……व्यक्ति को सिद्धि योग में सुनसान भूमि में अथवा शनिवार के दिन अनार की लकड़ी से ज़मीन खोदकर नीले रंग के 11 फूल अभिमंत्रित कर दवाने चाहिए।
2- रोग निवारण हेतु :- यदि षष्ठ भाव (पाताल) स्थित राहु समझ न आने वाला रोग दे रहा हो तो नीले फूलों से देवी सरस्वती (राहु की इष्ट देवी) की पूजा आराधना करनी चाहिए, इससे रोग से छुटकारा मिलता है।
3- शनि के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए शनिवार के दिन अपराजिता के नीले फूलों से पीपल की पूजा करके उन्हें शनि देव को चढ़ा दें।
4- यदि शनि दोष के कारण रुकावट आ रही हो तो शनिवार वाले दिन जमीन की खुदाई करके नीली अपराजिता के फूल दबा दें।
5- शनि शांति और धन प्राप्ति के लिए नीले रंग के फूल बहती नदी में बहाते समय शनिदेव से सुख और शांति के लिए प्रार्थना करें। माना जाता है कि शनिदेव को नीले रंग के फूल बहुत प्रिय है। शनिदेव को नीले लाजवंती, अपराजिता के फूल चढ़ाने से भी सारी परेशानियां दूर होती हैं।
6- मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान श्रीकृष्ण को नीले रंग के फूल चढ़ाने से गरीबी दूर होती है।
7- धन प्राप्ति के लिए प्रत्येक शुक्रवार महालक्ष्मी को नीले रंग की अपराजिता का फूल चढ़ाएं।
8- इस फूल का प्रयोग किसी को वश में करने के लिए भी किया जाता है।
9- यदि ज्यादा मेहनत करने पर भी बरकत न हो रही हो तो मां लक्ष्मी की पूजा के साथ अपराजिता के फूल की भी पूजा करें फिर इस फूल को लाल कपड़े में बांध कर तिजोरी में रख दें।
10- भगवान विष्णु, शिव और मां दुर्गा को विशेष मुहूर्त और दिन में नीले रंग के अपराजिता पुष्प चढ़ाने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
11- यदि बहुत पैसा कमाने के बावजूद भी आप उसे सेविंग नहीं कर पा रहे हैं तो लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ नीले कमल अथवा नीली अपराजिता के फूल का भी पूजन करें तथा बाद में इस फूल को लाल कपड़े में बांधकर अपने धन स्थान यानी तिजोरी या लॉकर में रखें।
12- इसके अलावा शनि शांति हेतु प्रतिदिन सूर्यास्त के बाद हनुमानजी का पूजन करें। पूजन में सिंदूर, काली तिल्ली का तेल, इस तेल का दीपक एवं नीले रंग के फूल का प्रयोग करें। ये उपाय आप हर शनिवार भी कर सकते हैं।
13- गर्भधारण में अपराजिता:- प्रायः किसी न किसी कारण से यौवनमयी कामिनियाँ चाहते हुए भी गर्भ धारण नहीं कर पाती जिस कारण मानहानि की भी स्थिति आती रहती है ,कभी कभी तो बाँझ भी मान लिया जाता है |ऐसी स्त्रियाँ नीली अपराजिता की जड़ को काली बकरी के शुद्ध दूध में पीसकर मासिक रजोस्राव की समाप्ति पर स्नान के पश्चात् पी लें और सारे दिन भगवान् कृष्ण की बाल रूप में पूजा करते हुए व्रत रखें और रात्री को गर्भधारण के हेतु पति के साथ सहवास करें तो गर्भ की सम्भावना बन सकती है |
14- भूत बाधा में अपराजिता:- कृष्ण कांता या नीली अपराजिता की जड़ को नीले कपडे में लपेटकर शनिवार वाले दिन रोगी के कंठ में पहना दे तो लाभ होता है | इसके साथ ही इसके पत्ते और नीम के पत्तों की धुप दी जाए या इनका रस निकालकर एकसार करके नाक में टपका देने से आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होता है |
15- विष दूर करने के लिए-अपराजिता की जड़ को घिसकर विष वाले स्थान पर लगाने से विष दूर हो जाता है।
16- सुगम प्रसव में अपराजिता:- प्रसव के समय कष्ट से तड़पती या मरणासन्न हुई गर्भवती स्त्री की कटी में श्वेत अपराजिता की लता लाकर लपेट देने से कष्ट का समापन हो जाता है और प्रसव में सुगमता हो जाती है |
17- चोरों से रक्षा के लिए- श्वेत अपराजिता की जड़ को बकरी के दूध में घिसकर गोली बना लें। फिर ये गोलियाॅ घर की चारों दिशाओं में रख दें। ऐसा करने से घर के अन्दर चोरों का प्रवेश जल्दी नहीं हो पाता है।
18- नकारात्मक उर्जा दूर करने के लिए- यदि आपके घर या आॅफिस में नाकारात्मक उर्जा का वास बना रहता है तो श्वेत अपराजिता की जड़ को शनिवार के दिन एक नीले कपड़े में बाॅधकर दरवाजे पर लटका देने से नकारात्मक उर्जा दूर हो जाती है।
19- अपराजिता की जड़ अपनी टोपी में लगाकर कोर्ट कचहरी में जाने से विजय प्राप्त होती है | दुश्मन भी आपकी बात को मानने लगता है | इसे प्रयोग करते समय अगर अपनी शर्ट की जेब में रखना काफी फायदेमंद होता है |
20- वशीकरण में अपराजिता:- रवि हस्त या पुष्य योग में विधिवत आमंत्रित करके अपराजिता के पुष्प ले आयें और छाया में सुखाकर सुरक्षित रखें | सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण के समय इसकी मूल का संग्रह करके रखें | अब कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी को जब शनिवार पड़े तब किसी जाग्रत शिवालय में जाकर संग्रह की गयी सामग्री को पीसकर गोलों बना लें | इस गोली को छाया में ही सुखाएं | इस क्रिया को करते समय श्वेत बिना सिला वस्त्र ही धारण किये रहें | इस गोली के सूखने पर संभल कर रख ले | किसी अच्छे तांत्रिक मुहूर्त में इसकी पूजा विधिवत करें और मंत्र जप करें | अब इसे अपनी आवश्यकता अनुसार घिसकर तिलक करके जिसके सामने जायेंगे वह आपके वशीभूत होगा, शत्रु भी हाँ जी, हाँ जी करने लगेंगे | इस बटी को जिह्वा के नीछे रख लेने पर समूह सम्मोहन भी होता है और विवाद भी समाप्त हो जाता है |