केतु ग्रह मन्त्र

Ketu is closely associated with spirituality, detachment from worldly desires, and the pursuit of inner peace.

केतु ग्रह मन्त्र

केतु ग्रह मन्त्र

केतु ग्रह ( मोक्ष प्रद माना गया है। यह सदैव राहु से सप्तम भाव में स्थित होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह मेष राशि का स्वामी है और राहु के विपरित वृष में उच्च तथा वृश्चिक में नीच का माना गया है। इसकी विंशोतरी दशा 7 वर्ष की मानी गई है। यह ग्रह तामस प्रधान ग्रह है। गुरु के साथ इसका सात्विक सम्बन्ध और चंद्र, सूर्य के साथ शत्रुवत सम्बन्ध है।

केतु साधना कौन करे?

केतु ग्रह ( के विपरीत प्रभाव से आकस्मिक वाहन दुर्घटना, लडाई-झगड़ें, धन हानि, व्यापार में पैसा फंसना, तंत्र प्रयोग, कारावास, मृत्यु, कुष्ठ रोग, चर्म रोग, मस्तिष्क रोग, शरीर में दर्द, कई कार्य करने पर भी लाभ नहीं होना, असफलता आदि सब केतु की महादशा, अंतर दशा, गोचर या मूल नक्षत्र दोष होने पर होता है। यदि आपके जीवन में इस तरह की कोई समस्या आ रही है तो कहीं न कहीं केतु ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है। केतु ग्रह के अशुभ फल से बचने के लिए अन्य बहुत से उपाय है पर सभी उपायों में मन्त्र का उपाय सबसे अच्छा माना जाता है। इन मंत्रों का कोई नुकसान नहीं होता और इसके माध्यम से केतु ग्रह के अनिष्ट से आसानी से पूर्णता बचा जा सकता है। इसका प्रभाव शीघ्र ही देखने को मिलता है।
किसी कारण वश आप यदि साधना ( न कर सके तो केतु तांत्रोक्त मन्त्र की नित्य 4 माला मंत्र जाप लाल आसन पर बैठकर मूंगा माला से करें। तब भी केतु घर का विपरीत प्रभाव शीघ्र समाप्त होने लग जाता है पर ऐसा देखा गया है कि मंत्र जाप छोड़ने के बाद फिर पुन: आपको केतु ग्रह के अनिष्ट प्रभाव देखने को मिल सकते है इसलिए साधना करने का निश्चय करें तो ही अधिक अच्छा है। अगर आप साधना ( नहीं कर सकते तो किसी योग्य पंडित से करवा भी सकते है।

केतु ग्रह का रत्न:

रत्न विज्ञान के अनुसार केतु ग्रह के लिये बैसुरीमणि अर्थात लहसूनिया पंच धातु की अंगुठी चांदी में बनवाकर किसी भी मंगलवार को सुबह धारण करें।

साधना विधान:

केतु साधना ( को किसी भी मंगल से प्रारम्भ कर सकते है। यह साधना प्रातः ब्रह्म मुहूर्त(4:24 से 6:00 बजे तक)या रात्रि को कर सकते है पर इस साधना को प्रातः करना ज्यादा अच्छा माना जाता है। इसको करने के लिए साधक स्नान आदि से पवित्र होकर लाल या भूरे रंग के वस्त्र धारण कर लें। दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछा दें। चौकी पर शिव (गुरु चित्र) चित्र या मूर्ति स्थापित कर मन ही मन शिव जी से साधना ( में सफलता हेतु आशीर्वाद प्राप्त करें। शिव चित्र के सामने एक थाली रखें उस थाली के बीच रोली से एक झंडा बनाये, उस झंडे में लाल मसूर की दाल भर दें, उसके ऊपर प्राण प्रतिष्ठा युक्त “केतु यंत्र’ स्थापित कर दें। यंत्र के सामने दीपक शुद्ध घी का जलाएं फिर संक्षिप्त पूजन कर दाहिने हाथ में पवित्र जल लेकर विनियोग करें –

विनियोग :

ॐ अस्य श्री केतु मंत्रस्य, शुक्र ऋषि:, पंक्तिछंद:, केतु देवता, कें बीजं, छाया शक्ति:, श्री केतु प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः
विनियोग के पश्चात् केतु का ध्यान करें—
अनेक रुपवर्णश्र्व शतशोऽथ सहस्रश: ।
उत्पात रूपी घोरश्र्व पीड़ा दहतु मे शिखी ॥
ध्यान के पश्चात् साधक एक बार पुन: ‘केतु यंत्र’ का पूजन कर पूर्ण आस्था के साथ ‘लाल हकीक माला’ से केतु गायत्री मंत्र की एवं केतु सात्विक मंत्र की एक-एक माला मंत्र जप करें –
गायत्री मंत्र :
॥ ॐ पद्मपुत्राय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात ॥
केतु सात्विक मंत्र:
॥ ॐ कें केतवे नम: ॥
इसके बाद साधक केतु तांत्रोक मंत्र की नित्य 23 माला 11 दिन तक जाप करे।

केतु तांत्रोक्त मंत्र:

॥ ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम: ॥
केतु स्तोत्र: नित्य मन्त्र जाप के बाद केतु स्तोत्र का पाठ हिन्दी या संस्कृत में अवश्य करें-
केतु: काल: कलयिता धूम्रकेतुर्विवर्णक: ।
लोककेतुर्महाकेतु: सर्वकेतुर्भयप्रद: ॥1॥
रौद्रो रूद्रप्रियो रूद्र: क्रूरकर्मा सुगन्धृक् ।
फलाशधूमसंकाशश्चित्रयज्ञोपवीतधृक् ॥2॥
तारागणविमर्दो च जैमिनेयो ग्रहाधिप: ।
पञ्चविंशति नामानि केतुर्य: सततं पठेत् ॥3॥
तस्य नश्यंति बाधाश्च सर्वा: केतुप्रसादत: ।
धनधान्यपशुनां च भवेद् वृद्धिर्न संशय: ॥4॥

केतु स्तोत्र का भावार्थ:

केतु का रंग काला, जीवों को ग्रसित करने वाला, धूम्र वर्ण तथा विकृत स्वरुप, लोगों को कष्ट देने वाला, अतिभयावह सभी के लिये विभत्य तथा भयप्रद होता है।॥1॥
केतु ग्रह भयानक, रुद्रप्रिय, क्रोधी क्रूर कर्म वाला, सुगंध प्रिय, पताश तथा धूम वर्ण के चित्र विचित्र, यज्ञोपवीत धारण किये हुए होता है।॥2॥
ग्रह नक्षत्रों को पीड़ित करने वाला, केतु जैमिनी पुत्र केतु ग्रहराज कहा गया है। केतु के इन पच्चीस नामों को नित्य जो साधक पढ़ता है।॥3॥
उसकी समस्त बाधाएं नष्ट होती है तथा ग्रहराज केतु की अनुकम्पा से धन तथा पशु धन से परिपूर्ण होता है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।॥4॥

केतु मंत्र साधना का समापन:

यह ( ग्यारह दिन की साधना है। साधना के बीच साधना नियम का पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन मंत्र जप करें। नित्य जाप करने से पहले नित्य संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखे। ग्यारह दिन तक मन्त्र का जाप करने के बाद मंत्र का दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन करें। हवन के पश्चात् यंत्र को अपने सिर से उल्टा सात बार घुमाकर दक्षिण दिशा में किसी निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दें। इस तरह से यह साधना पूर्ण मानी जाती है। धीरे-धीरे केतु अपना अनिष्ट प्रभाव देना कम कर देता है। केतु से संबंधित दोष आपके जीवन से समाप्त हो जाते है।

Top ten astrologers in India – get online astrology services from best astrologers like horoscope services, vastu services, services, numerology services, kundli services, online puja services, kundali matching services and Astrologer,Palmist & Numerologist healer and Gemstone,vastu, pyramid and mantra tantra consultant

Currency
Translate
X