कुंडली दोष क्या है और यह जन्म कुंडली में कैसे बनता है?

कुंडली दोष क्या है और यह जन्म कुंडली में कैसे बनता है?
June 19, 2025
🔮 कुंडली दोष का अर्थ
भारतीय ज्योतिषशास्त्र में “कुंडली दोष” या “जन्म कुंडली दोष” उस स्थिति को कहा जाता है जब ग्रहों की विशेष युति (संयोजन) या स्थिति व्यक्ति की कुंडली में अशुभ प्रभाव डालती है। ये दोष जीवन के विभिन्न क्षेत्रों — जैसे विवाह, करियर, स्वास्थ्य या संतान — में बाधाएं उत्पन्न कर सकते हैं।
🌌 कुंडली दोष कैसे बनता है?
कुंडली में दोष बनने के कई कारण हो सकते हैं, जो प्रमुख रूप से नवग्रहों की स्थिति और उनके बीच संबंध पर निर्भर करते हैं। नीचे कुछ मुख्य दोष दिए गए हैं:
🌑 1. मंगल दोष (मांगलिक दोष)
कैसे बनता है?
जब मंगल ग्रह लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित होता है।
प्रभाव:
विवाह में देरी, वैवाहिक जीवन में कलह या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ।
🌘 2. कालसर्प दोष
कैसे बनता है?
जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाएँ।
प्रभाव:
आजीविका, मानसिक तनाव, बाधाएँ, अचानक हानि, पारिवारिक समस्या।
🌒 3. पित्र दोष
कैसे बनता है?
जब कुंडली में सूर्य, चंद्र, राहु या केतु त्रिक भाव (6th, 8th, 12th) में स्थित हो और श्राद्ध कर्म अधूरे हों।
प्रभाव:
संतान संबंधी समस्या, पारिवारिक कलह, धन हानि।
🌓 4. ग्रहण दोष
कैसे बनता है?
जब चंद्रमा या सूर्य पर राहु या केतु की दृष्टि या युति हो।
प्रभाव:
मानसिक चिंता, निर्णय क्षमता में कमी, स्वास्थ्य समस्या।
🌗 5. शनि दोष (साढ़े साती / ढैय्या)
कैसे बनता है?
जब शनि जन्म राशि से 12वीं, 1वीं या 2वीं राशि में होता है (साढ़े साती) या चौथी/आठवीं राशि में (ढैय्या)।
प्रभाव:
आर्थिक संकट, मानसिक तनाव, करियर में बाधा।
गुरु चांडाल दोष (Guru Chandal Dosh) एक ज्योतिषीय योग है जो तब बनता है जब गुरु (बृहस्पति) और राहु (कभी-कभी केतु भी) एक ही राशि में या एक ही भाव (हाउस) में स्थित होते हैं। इसे अशुभ योग माना जाता है।
🌑 गुरु चांडाल दोष क्या है?
जब कुंडली में गुरु और राहु एक ही घर में आ जाते हैं, तो गुरु की शुभता पर राहु का छाया प्रभाव पड़ता है। इससे गुरु के सकारात्मक गुण (जैसे ज्ञान, धर्म, नैतिकता, शिक्षण, शुभता) कमजोर हो जाते हैं।
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गुरु: ज्ञान, धर्म, गुरु, शिक्षा, न्याय, बच्चों का कारक।
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राहु: माया, छल, भ्रम, अधर्म, लालच, आकस्मिकता।
जब ये दोनों मिलते हैं, तो इसे “गुरु-चांडाल योग” कहा जाता है, जिसका मतलब है कि गुरु राहु से “दूषित” हो रहा है। चांडाल का अर्थ होता है एक नीच या तामसिक तत्व, इसलिए यह नाम पड़ा।
🔍 प्रभाव क्या होते हैं?
गुरु चांडाल दोष के प्रभाव व्यक्ति की कुंडली के अन्य योगों, ग्रहों की दृष्टि और दशा पर भी निर्भर करते हैं। परंतु सामान्यतः इसके प्रभाव इस प्रकार हो सकते हैं:
मानसिक व आध्यात्मिक प्रभाव:
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आध्यात्मिक भ्रम या दिखावा।
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झूठे गुरुओं के पीछे भागना।
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नैतिक मूल्यों की गिरावट।
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ज्ञान का गलत उपयोग।
व्यवहारिक प्रभाव:
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शिक्षा में बाधा।
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गुरु या शिक्षक से विवाद।
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सामाजिक प्रतिष्ठा में गिरावट।
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बच्चों से संबंधित समस्याएं।
अन्य प्रभाव:
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संतान प्राप्ति में समस्या।
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गलत संगति या व्यसन की ओर झुकाव।
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लालच, धोखा या अवैध तरीकों से धन प्राप्त करने की प्रवृत्ति।
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नाडी दोष
नाड़ी दोष एक और महत्वपूर्ण कुंडली दोष है जिसका पता मुख्यतः मांगलिक कुंडली मिलान के समय लगाया जाता है। नाड़ी दोष मुख्य रूप से किसी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में समस्याएं पैदा करने के लिए विख्यात है। कुंडली मिलान के समय, यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही है, तो उन्हें नाड़ी दोष से पीड़ित कहा जाता है और आमतौर पर उन्हें एक-दूसरे से शादी करने की अनुमति नहीं होती है। नाडी दोष अष्टकूट मिलन के अनुसार आठ गुणों में से एक है और कुल 36 अंकों में से 8 अंक रखता है।
✅ उपाय (निवारण):
यदि कुंडली में गुरु चांडाल दोष है, तो निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
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गुरुवार का व्रत रखें।
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“गुरु बृहस्पति” का बीज मंत्र:
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः
— इसका नियमित जप करें। -
“राहु मंत्र”:
ॐ रां राहवे नमः
— इसका भी जप करें (विशेषकर शाम को)। -
गुरु से संबंधित दान:
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चने की दाल, पीले वस्त्र, हल्दी, केसर का दान करें।
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ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
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गुरु चांडाल दोष शांति पूजा किसी योग्य पंडित से कराएं।
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सच्चे गुरुओं या संतों की सेवा व संगति करें।
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संतान, शिक्षा और अध्यात्म के क्षेत्र में परोपकार करें।
📌 नोट:
हर किसी की कुंडली में गुरु-राहु का मिलना जरूरी नहीं कि दोष दे। यदि कुंडली में गुरु मजबूत है, उच्च स्थिति में है, या किसी शुभ ग्रह की दृष्टि है, तो यह योग राजयोग की तरह भी फल दे सकता है। इसे “गुरु चांडाल योग” का शुभ रूप भी कहा जा सकता है, खासकर अगर राहु विदेश, रिसर्च, तकनीकी क्षेत्रों में उन्नति का कारक बन जाए।
🧘♂️ कुंडली दोष के उपाय
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विशेष पूजा-पाठ (जैसे कालसर्प शांति, नवग्रह पूजा)
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रत्न धारण करना
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ब्राह्मण को दान
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मंत्र जाप (जैसे महामृत्युंजय मंत्र, राहु-केतु मंत्र)
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योग्य ज्योतिषाचार्य से परामर्श
केमद्रुम दोष
केमद्रुम दोष तब बनता है जब चंद्रमा के दोनों ओर कोई ग्रह न हो। ज्योतिष में चंद्रमा मन, वित्त और माता का कारक है। यह योग व्यक्ति को कमजोर बनाता है और उसके जीवन में सुविधाओं, धन और संबंधों का अभाव होता है। यह अत्यंत नकारात्मक दोष है।
अन्य लोकप्रिय दोषों में श्रापित दोष, शनि दोष, शकट योग आदि शामिल हैं। दोष की तीव्रता की जाँच एक अनुभवी ज्योतिषी द्वारा की जानी चाहिए, जो जन्म कुंडली दोष निवारण के लिए पूजा, जप, हवन, दान, रत्न, मन्त्र, यंत्र व रुद्राक्ष आदि से सम्बंधित उपायों का सुझाव देता है। हालांकि, सबसे प्रभावी उपाय, अपने कर्मों पर नियंत्रण और जीवन में सही मार्ग का अनुसरण करना है। जीवन में सही कर्मों का चुनाव कर हम अपने भूत, वर्तमान व भविष्य को संवार सकते हैं।
घातक दोष
यह तब बनता है जब कुंडली में शनि व मंगल की युति होती है। यह दोष व्यक्ति के जीवन में दुर्घटनाओं की संभावनाओं को बढ़ावा देता है। मंगल शनि की राशि मकर में ही उच्च होता है अतः इस योग के कारण व्यक्ति अत्यंत उद्यमी व असहनशील बन जाता है। उसकी यही आक्रामकता उसे दुर्घटनाओं का शिकार बना सकती है।
विष दोष
शनि और चंद्रमा की युति कुंडली में विष दोष बनाती है। इस दोष के कारण व्यक्ति हमेशा बेचैन रहता है और बिना वजह चिंता करता रहता है। व्यक्ति निराशावादी बन जाता है और हमेशा भारी तनाव में रहता है। यदि राहु कुंडली में शनि पर प्रभाव डाले या युति करे तो कुंडली में श्राप दोष का निर्माण हो जाता है जो जातक को विष दोष से भी पीड़ित करता है।
🔍 निष्कर्ष
कुंडली दोष जन्म कुंडली में ग्रहों की विशेष स्थिति या युति के कारण बनते हैं और इनका प्रभाव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पड़ता है। यदि समय रहते उचित ज्योतिषीय उपाय किए जाएं, तो इन दोषों का निवारण संभव है। कुंडली दोष की सही पहचान और समाधान के लिए कुशल ज्योतिषी से परामर्श लेना अत्यंत आवश्यक होता है।