इंसानी शरीर और पंच महाभूत

इंसानी शरीर और पंच महाभूत

धर्म ग्रंथों के अनुसार इंसानी शरीर को विभिन्न तत्वों के रूप में विभाजित किया गया है। कहा जाता है कि पृथ्वी पर रह रहे जीवों का शरीर पंच महाभूतों से बना है, जिसमें पृथ्वी यानी कि भूमि, जल, वायु, अग्नि तथा आकाश शामिल हैं। मानव के शरीर में कुल 24 तत्वों का वास है जिनमें पंच महाभूत, पंच तन्मात्र, पंच ज्ञानेन्द्रियां, पंच कर्मेन्द्रियां तथा मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार का मिश्रण होता है।
इसी तरह से धरती पर रह रहे मनुष्य के अलावा अन्य जीव जैसे कि पशु, पक्षी इत्यादि के भीतर मानव शरीर की तरह ही तत्व उपस्थित होते हैं। परन्तु इन जीवों में मनुष्य की तरह पंचमहाभूत नहीं होते हैं।
मानव शरीर से संबंधित एक और बात काफी आश्चर्यजनक है कि मानवीय शरीर चार प्रकार का होता है – पार्थिव शरीर, सूक्ष्म शरीर, लिंगम शरीर तथा कारण शरीर। इनमें पार्थिव शरीर प्रथम स्थान पर होता है, जिसे स्थूल शरीर भी कहा जाता है। स्थूल शरीर प्राणी की जीवित अवस्था है यानी कि जब तक मनुष्य के शरीर में आत्मा का वास है और उसकी श्वास चल रही हैं, उसका शरीर स्थूल शरीर कहलाता है।
इसके बाद सूक्ष्म शरीर में पंच महाभूत नहीं होते हैं। यह शरीर पारदर्शी होता है यानी कि एक ऐसा शरीर जिसकी छाया नहीं पड़ती है। इस शरीर की आकृति तो स्थूल शरीर जैसी ही होती है लेकिन पंच महाभूतों की अनुपस्थिति के कारण यह शरीर हल्का होता है। परंतु इसमें शक्ति बहुत अधिक होती है
सूक्ष्म शरीर भूत-प्रेत आदि की देह होती है। सूक्ष्म शरीर वालों के लिए पृथ्वी जैसे ठोस ग्रहों पर निवास आवश्यक नहीं है। इस तरह का शरीर तो अंतरिक्ष में भी रह सकता है। केवल वही सूक्ष्मधारी पृथ्वी के आसपास रह सकते हैं, जिन्हें पुनर्जन्म लेना हो। यहां पुनर्जन्म से तात्पर्य केवल उसी मनुष्य के रूप में जन्म लेना नहीं है, बल्कि किसी भी मानवीय शरीर में जब दोबारा से पृथ्वी पर आना हो तो सूक्ष्म धारी पृथ्वी के निकट विचरण करते हैं।
अब बारी है तीसरे प्रकार के शरीर की जो है लिंगम शरीर। लिंगम शरीर एक ऐसा शरीर है जिसमें मानव जाति के 24 तत्वों में से केवल 13 तत्व शामिल होते हैं। इस शरीर में पंच कर्मेन्द्रियाँ, पंच ज्ञानेन्द्रियां तथा मन, बुद्धि एवं अंहकार होता है। मान्यता है कि लिंगम शरीर का निवास चंद्रलोक में होता है।
हैरानी की बात तो यह है कि हमारा विज्ञान चंद्रमा ग्रह तक पहुंच तो गया है लेकिन अब तक वैज्ञानिकों को वहां मानव जीवन के चिन्ह नहीं मिले हैं। इसका कारण है लिंगम शरीर में स्थूल शरीर के तत्वों की अनुपस्थिति, जिस वजह से चाह कर भी वैज्ञानिक इस शरीर के चिन्हों को खोज नहीं पा रहे हैं।
चौथे प्रकार का शरीर कारण शरीर कहलाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार इस प्रकार के शरीर का आकार मानव शरीर में मौजूद अंगूठे के समान होता है। मानव शरीर के इस पड़ाव तक आकर शरीर की अपनी अस्मिता खो जाती है और वह आत्मा में परिवर्तित हो जाता है। इसीलिए कारण शरीर का आकार केवल एक अंगूठे के समान बताया गया है।
कारण शरीर का अपना कोई स्वरूप नहीं होता तो फिर उसकी आकृति का व्याख्यान करना असंभव है। इस शरीर में आने के बाद ही आत्मा दूरस्थ लोक-लोकान्तरों का परिभ्रमण करते हुए अंत में परमधाम ‘सूर्यलोक’ की ओर प्रस्थान करती है। इसके बाद आत्मा का परमात्मा में विलय हो जाता है।
जन्म तथा मरण की परिभाषाओं को लेकर ज्योतिष विज्ञान में भी कुछ आलेख किया गया है। यह बातें जीवन के चक्र को सौरमण्डल के ग्रहों से जोड़ती हैं। इस विज्ञान के अनुसार सूर्य को आत्मकारक कहा गया है और चंद्रमा को मन का कारक अमृतमय ग्रह कहा गया है। इसके अलावा बृहस्पति ग्रह को ज्ञान एवं जीवकारक कहा गया है और शनि को न्यायकर्ता, मृत्यु एवं आयु का कारक ग्रह कहा गया है।
सनातन धर्म में एक प्रमुख पुराण की रचना की गयी है। यह है गरुड़ पुराण जिसमें प्रेत कर्म एवं मृत्यु का विवरण मिलता है। इस पुराण के अधिष्ठातृ देव भगवान विष्णु हैं। इस पुराण के अनुसार देहावसान के बाद स्थूल शरीर छूट जाने पर जीव कुछ क्षण के लिये कारण शरीर में निवास करता है। कारण शरीर में जाने के बाद एक से लेकर दो क्षण तक (जहां एक क्षण चार मिनट के बराबर होता है), मृत्यु के पूर्व प्रत्येक प्राणी को सर्वात्म दृष्टि प्राप्त हो जाती
उस प्राणी के पाप तथा पुण्य का हिसाब लगाने के बाद अगले दो मुहूर्त में उसे यम लोक से अपने मृत-शरीर के पास वापस भेज दिया जाता है। परंतु उसे स्थूल शरीर में प्रवेश करने की आज्ञा नहीं होती है। इसके बाद वह सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करता है। एक ऐसा शरीर जिसका वास्तव में कोई स्थान नहीं है लेकिन कुछ शक्तियां जरूर हैं जिसकी सहायता से वह मानव जाति से सम्पर्क साध सकता है।
सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करने के ठीक छह माह बाद जीव को लिंगम शरीर की प्राप्ति होती है। प्रत्येक शरीर के मिलने का गरुड़ पुराण में दिनों के हिसाब से वर्णन किया गया है जिसके अनुसार जीव की मृत्यु के 10 दिन में सूक्ष्म शरीर बनता है। जिसके पश्चात् 11वें दिन से जीव पुनः सूक्ष्म शरीर धारण कर पृथ्वी से बृहस्पति ग्रह तक यात्रा आरम्भ करता है। अर्थात् सूक्ष्म शरीर प्राप्त कर जीव दूसरी बार फिर से यमपुरी के लिये रवाना होता है।
इस बार उसे वहां तक जाने में एक वर्ष लग जाता है। पहली बार जीव कारण शरीर में प्रकाश की गति से गया था, दूसरी बार वह सूक्ष्म शरीर में चलता है और मार्ग में उसे अंतरिक्ष की अठारह सूक्ष्म पुरियों में विश्राम लेना पड़ता है। इस यात्रा के एक वर्ष में छः माह तक जीव सूक्ष्म शरीर में रहता है जिस कारण उसकी गति धीमी पड़ जाती है।
जीव के लिए रास्ते में कुल छह ठहराव निश्चित किए गए हैं जहां वह अपने पूर्वार्जित पुण्य कर्म का भोग करता है। इस बीच जीव को एक वैतरणी नदी पार करनी होती है जिसे लांघने के बाद ही उसे लिंगम् शरीर की प्राप्ति होती है। इस शरीर में वह बृहस्पति ग्रह तक जाता है। बृहस्पति ग्रह से आगे बढ़ते हुए जीव को दोबारा से कारण शरीर मिलता है।
गरुड़ पुराण में यमलोक की तस्वीर भी जाहिर की गई है। बताया गया है कि यमपुरी के बाहर एक विशाल घेरा बना हुआ है। यह घेरा शनि ग्रह के चारों ओर कोहरे के रूप में दिखाई पड़ता है। इस स्थान पर रहने वाले जीव कारण शरीर धारक हैं। कारण शरीर की अवस्था प्रकाश-पुंज है इसीलिए यह प्रकाश किरणों के रूप में हमें दृष्टिगत हो सकती है।
आज के समय में जिस प्रकार से विज्ञान भी इन ग्रहों की तस्वीर हमें प्रदान कर रहा है वह बेशक सही है लेकिन वहां मौजूद मानव शरीर के अस्तित्व का पता लगाने में आज भी असमर्थ है विज्ञान। इसमें विज्ञान की कोई गलती नहीं है क्योंकि जिस अवस्था में जीव वहां मौजूद हैं उस शक्ति को साधारण मनुष्य द्वारा पहचान किया जा पाना कठिन है क्योंकि इन्हें पहचानने के लिए एक खास तरह की शक्ति की अवश्यकता है।
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